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बनारसीविलासः सोलह सो छियासीये संवत कुंवारमास,
पक्ष उजियारे चन्द्र चढ़वेको चाव है। विदशी दिन आयो शुद्ध, परकाश पायो,
उत्तरा आषाढ़ उडुंगन यहै दाव है। बानारसीदास गुणयोग है शुकलवाना,
पौरिषप्रधान गिरि करण कहाव है। एक तो अरथ शुभ महूरत वरणाव, .
दूसरे अरथ यामें दूजो वरणाव है ॥ ५१ ॥ हेतवंत जेते ताको सहज उदारचित्त, ___ आगे कहाँ एतो वरदान मोहि दीजियो । उत्तम पुरुष शिरीवानारसीदास यश, __पन्नगस्वभाव एक ध्यानसों सुनीजियो ॥ पवनस्वभाव विसतार कीज्यो देशदेश,
अमर स्वभाव निज स्वाद रस पीजियो । वावन कवित्त ये तो मेरी मतिमान भये, हंसके स्वभाव ज्ञाता गुण गहलीजियो ॥ ५२ ॥ इति श्रीवानारसी नामाहित ज्ञानवावनी।
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१ नक्षत्र