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District.ttatuttiterttotastuttakuttattation ३८८ जैनग्रन्थरत्नाकरे
वरणतें भिन्नता सुवरणमें प्रतिभास,
सुगुण सुनत ताहि होत है अनंद जू । वानारसीदास जिनवाणी वरणन कियो,
तेरी वाणी वरणाव करै बड़े बून्द जू ॥ १८ ॥ शकबंधी सांचो शिरीमाल जिनदास सुन्योः
ताके वंश मूलदास विरद बढ़ायो है। ताके वंश क्षितिमें प्रगट भयो खड्गगसेन, __वानारसीदास ताके अवतार आयो है ।। वीहोलिया गोत गर वतन उद्योत भयो,
आगरेनगर ताहि भेटे सुखपायो है। 'वानारसी 'वानारसी' खलक बखान करै,
ताको वंश नाम ठाम गाम गुण गायो है ॥४९॥ खुशी हैके मन्दिर कपूरचन्द साहु वैठे,
बैठे कौरपाल सभा जुरी मनभावनी । वानारसीदासजूके वचनकी बात चली,
याकी कथा ऐसी ज्ञाताज्ञानमनछावनी ॥ गुणवंत पुरुषके गुण कीरतन कीजे,
पीतांवर प्रीति करी सज्जन सुहावनी ।। वही अधिकार आयो ऊंघते विछोना पायो,
हुकम प्रसादतें भयी है ज्ञानवावनी ॥ ५० ॥ सल्ललल्लल्याला
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