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बनारसीविलासः
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___ ऊंचे वंशकी चढ़ाई प्रीतपनों प्रीतिताई,
___ गुण गरबाई पिहलाई घनो फेर है। वचन विलासको निवास वन सघनाई, ___चतुर नागर नर सुरनको घेर है ।। कीरति सराहको प्रवाह बहै महानदी,
एतो देश उपमा है सबै जग जेर है। हेरि हेरि देख्यो कोऊ और न अनेरो ऐसो,
वानारसीदास वसुधामें गिरि मेर है ॥ ११ ॥ रीति विपरीति रंग राच्यो परगुण रस, _छायो झूठे भ्रम तातें छूटी निधि घरकी । तेरे घर ऋद्धि है अनंत आपरंग आये,
नेकु जो गरूरी फेरे हाय होय हरकी ॥ कायके उपायसेती एती होस पूरै भले.
निजत्रियारूठे वेती होस पूजै नरकी । वानारसीदास कहै मूढको विचार यह,
कोटीध्वज भयो चाहै आस करै परकी ॥ १२ ॥ ऋतु वरसात नदी नाले सर जोरचढे,
वटै नाहिं मरजाद सागरके फैलकी । | नीरके प्रवाह तृण काठबृन्द बहे जात,
चित्रावेल आइ चढ़े नाही काहू गैलकी ॥
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