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जैनग्रन्थानावरे
अन्तियोंके आधारसे उनमें अनेक असंमत्र घटनाओंका समावेश किया। * गया है, जिनपर एकाएक विश्वास नहीं किया जा मत्ता । एनी दशामें चरित्रसे जो लोकोपकार होना चाहिये, वह नहीं होना । । क्योंकि चरित्रका अर्थ चारित्र अध्या आचरण है. और आचरणीम अन्तर्वाध दोनोंका समावेश होना चाहिये । जिनचरित्रों में यह बात ॐ नहीं है, ये पूर्ण चरित्र नहीं है। कविवर बनारसीदासजीक जीवनचरि
से भाषासाहित्यकी इन एक बड़ी मारी त्रुटिकी पूर्ति होगी । क्योंकि अन्तर्वास्य चरित्रोंका इसमें अच्छा चित्र वींचा गया है।
पारंम! पानि-जुगलपुट शीस धरि, मान अपनपो दास ।।
आनि भगत चित जानि प्रभु, यन्द्रों पांस सुपास ॥१॥ * यह मंगलाचरण अर्धकथानकका है । ऋदिवर पार्श्वनाथ और
सुपार्श्वनायके विशेष भक्त थे, इमालय कवितामें यत्र तत्र डक जिनेन्द्रद्वय की ही लुति की है । आपका जन्मनाम विक्रमाजीत था, परन्तु आपके पिता जब पार्श्वनाथमुपार्श्वनायकी जन्मभूमि वनारस (काशी) की यात्राको गये थे, तब भक्तिवश बनारसीदास नाम रखदिया था, इसका विशप विवरण आग दिया गया है। वनारसीदासजी को भी अपने नामक कारण बनारस और उक्त जिनेन्द्रद्वयके चरणों में विशेषानुराग हो गया था । बनारसीनगरी की व्युत्पत्ति देतिय धारन केसी नुन्दर की ई
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पार्य। २ गुपाय।
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