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१६ कविवरवनारसीदासः ।
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| वनारसीदासजीकी जीवनकथाका शोध करना प्रारंभ किया। जिस
समय बनारसीविलासके मुद्रित करानेका विचार हुआ है, उसके बहुत पहिले हम इस विषयके प्रयत्नमें थे । हर्पका विषय है कि ! ॐ हमारा थोडासा परिश्रम एक बडे फलरूपमें फलित हो गया है । अअर्थात् स्वयं कविवर बनारसीदासजीके हाथका लिखा हुआ ५५ वर्षका
जीवनचरित्र प्राप्त हुआ है। इस जीवनचरित्रका नाम उन्होंने अर्द्धकथानक रक्खा है, और ५५ वर्षके पश्चात् शेषजीवन-कथानक लिखनेकी प्रतिज्ञा की है । परन्तु बहुत शोध करने पर भी उनके
शेषजीवनके वृत्तस हम अनभिज्ञ रहे । अर्द्धकथानक में जो कुछ लिखा है, उसको हम गद्यप्रेमी पाठकोंकी प्रसन्नताकेलिये अपनी आलोचनासहित यहां प्रकाश किये देते हैं । अर्द्धकथानक पद्यबन्ध है। इस चरित्रमें उसके अनेक सुन्दर पद्य भी यथावसर दिये जायेंगे। ॐ पाश्चात्य पंडितोंका यह एक बडा भारी आक्षेप है कि, भारतके विद्वान् जीवनचरित्र अथवा इतिहास लिखना नहीं जानते थे। परन्तु आजसे ३०० वर्ष पहिले जब पाश्चात्यसभ्यताका नाम निशान नहीं
था, भारतका एक शिरोमणि कवि अपने जीवनके ५५ वर्षका * वृत्तान्त लिखकरके रखगया है, इतिहासमें यह एक आश्चर्यकारी घटना है। हम निर्भय होकर कह सक्ते हैं कि, कविशिरोमणि नि बनारसीदासजी एक ही कवि थे, जिन्होंने अपने जीवनकी सची घटनायें लिखकर अच्छे स्पष्ट शब्दोंमें गुणदोयोंकी आलोचना की है।
दोषोंकी आलोचना करना साधारण पुरुषोंका कार्य नहीं है। ॐ भाषासाहित्यमें अनेक संस्कृत तथा भाषा कवियोंके जीवनचरित्र लिखे गये हैं, परन्तु उनमें तथ्य बहुत थोडा है । क्योंकि किंवद
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