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कविवरवनारसीदासः।
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कवित्त। गंगा माहिं आय धंसी, है नदी वरुना असी
बीच वसीवानारसी नगरी वखानी है। काशिवारदेश मध्य गांव तातें काशी नांव,
श्रीसुपास-पासको जनमभूमि मानी है। तहां दोऊ जिन शिवमारग प्रकट कीन्हों,
तवसेती शिवपुरी जगतमें जानी है। ऐसीविधि नाम भये नगरी बनारसीके,
और मांति कह सो तो मिथ्यामतवानी है ॥२॥ और भी अर्थकथानक की भूमिका बांधते हुए कहा है:जिन पहिरी जिन जनमपुरि, नाम मुद्रिकाछाप । सो बनारसी निज कथा; कहै आपसों आप ॥३॥ भगवान् पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनायकी स्तुति नाटकसमयसारक प्रारंममें कैसी अच्छी की है
(सर्व इस्वाक्षर ) मनहरण। करमभरमजगतिमिरहरनखग,
उरगलखनपग शिवमगदरसि। निरखत नयन भचिक जल वरपत,
हरपत अमित भविकजन सरसि। मदनकदनजित परमधरमहित,
सुमिरत भगत भगत सब डरसि।
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