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उत्थानिका।
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__भाषासाहित्यके विषयमै इतना ही कह कर अव यह उत्थानिका पूर्ण की जाती है। आशा है कि, यह जिस इच्छासे लिखी गयी है, पाठकोंके द्वारा वह किसी न किसी रूपमें फलवती होगी । पाठकोंके एक बार ध्यानसे पढलेनेमें ही हम अपनी इच्छाको फलयती ॐ समझ सक्ते हैं । इत्यलम् विद्वद्वरे -
जीयाजैनमिदं मतं शमयितुं कुरानपीयं कृपा । ___ भारत्या सह शीलयत्वविरतं श्रीः साहचर्यवतम् ॥ मात्सर्य गुणिपु त्यजन्तु पिशुनाः संतोपलीलाजुषः ।
सन्तः सन्तु भवन्तु च श्रमविदः सबै कवीनां जनाः चन्दावाड़ी-बबई विदुषां चरणसरोव्हसेवी
नाथूरामप्रेमी, देवरी (सागर) निवासी।
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