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होता है। उसी सघ मे श्री १०८ मुनि अजितसागर जी महाराज है जो बालब्रह्मचारी है तथा अध्ययन-अध्यापन मे निरन्तर निरत रहते है। आपने न्याय, व्याकरण, साहित्य तथा धर्म आदि विषयो को अच्छा अनुगम किया है और बडी रुचि के साथ संघस्थ साधुओ तथा माताजी आदि को विविध शास्त्रो का अध्ययन कराते है । पठन-पाठन के अतिरिक्त आपके पास जो समय शेष रहता है उसमे आप प्राचीन ग्रन्थो का अवलोकन कर उनका सशोधन तथा उनमे से उपयोगी विषयो का सकलन करते हैं । 'गणधरवलय पूजा' तथा 'रविव्रत कथा' आपके द्वारा सशोधित होकर प्रकाश में आई है,। यह सुभाषित मञ्जरी नाम का सकलन भी
आपकी ही कृति है। अनेक गांस्त्रो का अध्ययन कर आपने हजारो सुभाषितो का संग्रह किया है तथा उन्हे विषय वार विभाजित कर उनके अनेक उपयोगी प्रकरण तैयार किये
विमा
'इस संकलन मे जिनेन्द्रस्तुति, जिन भक्ति आदि २६ प्रकरण सकलित है। इन प्रकरणो मे शीर्षक देकर अनेक विषयो पर प्रकाश डाला गया है । जन साधारण के उपकार की दृष्टि से इन श्लोको का हिन्दी अनुवाद भी साथ मे दे दिया है। हिन्दी अनुवाद साथ रहने से प्रत्येक स्त्री पुरुष स्वाध्याय द्वारा लाभ उठा सकते है। इस सुभापित मञ्जरी मे १००१ श्लोक है । उदयपुर के चातुर्मास मे मात्र