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________________ दो शब्द सस्कृत साहित्य रूपं सागर अनेक सुभाषित रूप रत्नों से भरा हुआ है । ये सुभाषित, प्रकाशस्तम्भ के समान दिग्भ्रान्त पुरुषो को समुचित मार्ग का प्रदर्शन कराने मे परम सहायक होते है । अप्रस्तुत प्रशसा या अर्थान्तरन्यास अन्तकार के माध्यम से कवियो ने अपने काव्यो अथवा पुराणो मे एक से एक बढकर सुभाषितों का समावेश किया है । आचार्य वादोभसिह सूरि ने 'क्षत्रचूडामणि' ग्रन्थ की रचना करते हुए प्रायः प्रत्येक श्लोक मे सुभाषित का समावेश किया है। अमित गति प्राचार्य ने 'सुभाषित रत्न सन्दोह' नाम से सुभाषितो का स्वतन्त्र ग्रन्थ निर्मित किया है। ___ सुभाषितो का संग्रह विद्वानो को इतना अधिक प्रिय रहा है कि इस विषय पर अच्छे२ सग्रह प्रकाशित हुए है । 'सुभाषित रत्न भाण्डाकर' नाम का एक बृहदाकार संग्रह सस्कृत साहित्य में अत्यन्त प्रसिद्ध है। श्रीमान् पूज्यवर स्वर्गीय आचार्य शिवसागरजी महाराज के सघ मे अनेक प्रबुद्ध मुनिराज उनके शिष्य है । 'ज्ञानध्यान तपोरक्त.' यह जो तपस्वियो का लक्षण आगम में कहा गया है वह उन सघस्थ मुनियो मे अच्छी तरह घटित
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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