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सुभाषितमञ्जरो ज्ञानदान से जीव मोक्ष पद को प्राप्त होता है मामरश्रियं भवत्वा भुवनोत्तमपूजिताम् । ज्ञानदानप्रसादेन जीवो गच्छति नितिम् ।।२११॥ अर्थ - जीव ज्ञानदान के प्रसाद से मनुष्य और देवो की लक्ष्मी का उपभोग कर लोकोत्तम पुरुषो के द्वारा पूजित मोक्ष को प्राप्त होता है ॥२११॥ ' ज्ञानदान देने वाले को सासारिक लक्ष्मी कठिन नही है : मुक्तिः प्रदीयते येन शास्त्रदानेन पावनी । । 'लक्ष्मी सांसारिकी तस्य प्रददानस्य कः श्रमः ॥२१२॥ अर्था.- जिस शास्त्रदान के द्वारा पवित्र मुक्ति प्रदान को जाती है उस शास्त्र दान को सांसारिक लक्ष्मी प्रदान करते हुए क्या श्रम होता है ? अर्थात् कुछ नहीं ॥२१२।।
“शास्त्रदान किसे कहते हैं । लिखित्वा लेखयित्वा वा साधुभ्यो दीयते श्रुतम् । : , व्याख्यायतेऽथवा स्वेन-शास्त्रदानं तदुच्यते ॥२१३॥ : अर्थः- स्वयं लिख कर अथवा दूसरो से लिखवा कर मुनियों के लिये जो शास्त्र दिया जाता है अथवा. स्वय शास्त्र की व्याख्या की जाती है वह शास्त्रदान कहलाता है। '.