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सुभाषितमञ्जरो निर्दोष आहार कहा प्राप्त नही होतो,?. श्रावकाचारमुक्तानां हिंसोंदमविवर्तिनाम्। ' दयावमाविनीत्यादिगुणग्रामास्तचेतसाम् ।।२०।। मिथ्यादृष्टिपरीतानां स्वयं मिथ्यादृशामरम् । गेहिनां वेश्मसु भुक्ति निर्दोषा लभ्यते कथम् । २०६।। अर्थ - जो श्रावकाचार से रहित है, हिंसामय व्यापार करते हैं दया क्षर्मा तथा विनय आदि गुणो के समूह से शून्य हृदयं हैं, मिथ्यादृष्टियो से घिरे हुए हो, तथा स्वयं मिथ्याष्टिं हों, ऐसे गृहस्थो के घरो मे निर्दोष आहार कैसे प्राप्त हो सकता है?
- - .. ज्ञानदान प्रशंसा
ज्ञानदान-मुक्ति का कारण है यो ज्ञानदानं कुरुते मुनीनां स देवलोकस्य सुखानि भुक्त्वा, राज्यं चं सत्केवलबोधलीब्धि लब्ध्वा स्वयं मुक्तिपदं लभैता. अर्थ:- जो मुनियो के लिए ज्ञानदान करता है वह स्वैम लोके के सुख भोगं कर राज्य को प्राप्त होता है और केवल ज्ञान को प्राप्त कर स्वयं मोक्ष पद को प्राप्त होता है ।