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________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। दौड़। सदा भगवन्त नाम अपना । यही जानो कार्य अपना ।। और भूमगाल सर्व स्वप्ना । दूरसे तिन्हें देख कपना ।। नाथूराम नरभवफललीजे । भजननिशिदिन प्रभुका कीजेनी॥ संसार दुःखकी लावनी ४३॥ है यह संसार असार दुःखका घररे । ये विषयभोग दुःख खान इनसे तू डररे ॥ टेक !। इनमें दुःख मेरु समान मुक्ख ज्योराई, सोभी सव आकुलता मय पडत दिखाई । इसकी उपमा इस भांति गुरू बतलाई । सो मुनो सकलेद कान कहूं समझाई । इसके सुनने मे सुधी ध्यान अयधररे । ये विषय भोग दुःखखान इनसे तूडररे ॥ १ ॥ एक पथिक महावन माहिं फिर था भटका। तापर गजदौड़ा एकतभी वह सटका ॥ सो कुएम तरुकी मूल पकड़ के लटका तातरुको क्रोधवश जा हाथी ने झटका | तरुसे मधुमाखी उड़ी शोर अति कररे, ये विषय भोगदुःखखान इनसे तू डररे ॥ २॥ पन्थी को मक्खियां चिपट गई उड़प्यारे जड़काटें मूसे दोय श्वेत अरुकारे, चौनाग एक अजगर कुएं में मुंह फारे ॥ देखत ऊपर को गिरे पथिक किसबारे; वहां टपकी मधु की बूंद पथिक मुखपररे । ये विषय भोग दुःखखान इनसे तूडररे ॥ ३ ॥ शठस्वादत मधुका रवाद सभी दुःख भूला, करास लखे ऊपर को जड़से झूला ।। तहां से खग दम्पति जाते थे गुण मूला, तिन देख दयाकर कहे वचन अनुकूला। निकले तो लेय निकाल तुझे ऊपररे, ये विषय भोग दुःख खान इनसे तूहररे।। ४ ।। बोला पन्थी एक बूंद शहद मुख आवे, तब चलों तुम्हारे साथ यही मनभाव।सो एक बूंदको देखो शठ मुंह वावे, नालखे वेदना घोर टंगा जो पावे, सोही गति संसारी जीवोंकी नररे । ये विषय भोगदुःख खान इनसे तूडररे ॥ ५ ॥ भवत्रन में पन्थी जीव काल गजजानो, कुलकुआ
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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