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ज्ञानानन्दरत्नाकर
शेर। वने जो नाव पत्थर की प्राप गझधार बोरन को। कहो केमे उतारेंगे भवोदधि पार औरन को ॥ पियें गांना चर्स हरदम वैठारे जार चोरन को। कहो किसशस्त्र से सकते ये पाप पहाड फोरन को ॥ इन्हे भजे यह फल पैहो जो दुर्गति अपना धामकरो । बाबानी को जान वाबाजाके से काम करो ॥ ७॥ या पानी शारु वा वानी दोनों के प्रगटकहे लक्षण । उचित यही के परीक्षा करो देखकर मिन अक्षन ।। या घाजी वे ढोंगी साधु हैं जो अभक्ष करते भक्षण । वापानी वे साधु हैं जो सब जीवों के रक्षण ||
शेर। शहद मद्य मांस विष माखन जलेबी गारि वड ऊमर । अथाना कन्द मल भटा चलत रस तुच्छ फल कटहर ! अजानें फलरुबहु बीना कठूमर पीपलरूपाफर । निशा भोजन अगाला जल इन्हे तजये अभक्ष हैं नर ।। इन्हें तमें सो बाबाजी सिन की स्तुति नाथूराम करो । या वानी को जान वाबानी केसे कागकरो ॥ ८ ॥
शारखी। प्रथम नमो अरिहंत हरे जिन चारि घाति विधि | बसु षिधि हर्ता सिद्ध नमों देंयनष्ट ऋद्धि सिधि ॥ नमों सूर गुणपुर नमों उवझाय सदाणी । नमों साधुगुण गाध व्याधि ना होय कदानी ।।
दौड़। पंच पद येही मुक्ति के मुन्न । जपो जैनी मतजावो भूल || नाम इनके से शेशहो फूल । करें निंदा तिनके शिरधूल । नाथूराम यही पंच नवकार | कंठघर तरो भ.. चादधि पाजी॥
पंच नमोकारकी २४॥
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------ णमोकार के पांचो पद पैतिम अक्षर जो कंठ धरें । मुरनर के सुख भोग चस् ।