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वीरस्तुतिः ।
• भावार्थ-जिसप्रकार स्वर्गके समस्त देवोंमें इन्द्र, रूप-गुण और ऐश्वर्यादि गुणोंमे प्रधान होता है उसी प्रकार महावीर भगवान् सव लोकोंमें उत्तम और प्रधान थे, आदिजिन प्रमुख पहले २३ तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित धर्मके नेता-प्रचारक थे, इस वचनसे उनकी भ्रमणा दूर होजाती है जो महावीर प्रभुको ही जैनधर्मका संस्थापक मानते हैं, परन्तु श्रीमहावीरदेव तो जैनधर्मके आद्य संस्थापक न होकर उनसे पूर्व होनेवाले २३ तीर्थकरोंद्वारा कथित धर्मके प्रचारकमात्र थे और उस प्रभुका गोत्र काश्यप था ॥ ७॥
भाषा-टीका-ये तरुण तपस्वी मुनि उत्कृष्ट और प्रधान धर्मका सरल और आत्माके लिए उन्नत मार्ग बतानेवाले थे। वह धर्म ऋषभादि २३ तीर्थकरके वताए हुए धर्मसे मिन्न न था। हा कुछ देशकालके अनुसार संशोधन अवश्य किया था परन्तु आप जैन धर्मके आद्य प्रवर्तक न थे, इससे वीर प्रभु जैन धर्मको फिरसे प्रचार करने वाले सिद्ध होते हैं इनसे पूर्व २३ तीर्थंकर और होगए हैं ] प्रभु काश्यप गोत्रकी विमल विभूति थे । दिव्य ज्ञानको पाकर चतुविध संघके लिए धर्मपथ बतानेके नातेसे आप नेता भी थे। क्योंकि संघको
आपने ही तो ज्ञान, दर्शन, चरित्र, अहिंसा, तप, त्याग, संयम आदिमें प्रवृत्त किया था। अपनी भलाई और संसार की भलाई या कल्याणके अर्थ संघको दान, शील, तप, भाव ये धर्मके चार भेद बताए । तथा साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकारूप चार प्रकारके सघको स्थापन करके आपने उनको संगठनकी परम शक्ति का तत्व बताया था। इन्द्र का स्वर्गके देवों पर उसके महान् होनेके कारण महाप्रभाव है, इसी प्रकार पदार्थ विज्ञानका निश्चय प्रगट करने वाले तत्वविदोंमें महावीर प्रभु ऐश्वर्या शाली थे । संसार और मोक्ष की गुत्थीको सुलझानेमें और सारभूत तत्वोको प्रगट करनेमें प्रखरप्रकाशक थे। सात तत्व-नव पदार्थआदि महान् तथा गंमीर पदार्थों का सरल आशय जनतामें आपने ही निपुणतासे प्रगट किया । यथा शक्रंद्रके ५०० प्रधानों की दृष्टि उसीकी और रहती है जिस ओर इन्द्र की दृष्टि होती है। इसी तरह जिस अनेकान्त पथ पर आपकी दृष्टि जमी थी संसारने उसी पथ का अनुसरण किया इस अपेक्षासे आपके मी सहस्रनेत्र थे । रूप, वल, वर्ण, वीर्य आदिमें आप सर्व प्रधान थे, मुनिगणरूपी सितारों में आप मुनिचन्द्ररूपी ईश्वर थे ॥ ७ ॥
गुजराती अनुवाद-आ तरुण मुनिश्रेष्ठ उत्कृष्ट धर्मनो सरळ तेमन