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वारस्तुतिः।
उसी तरह महावीर भगवान्मी ज्ञानकी अनन्तताकी अपेक्षा सर्वोत्कृष्ट थे। उस ज्ञानसे भगवान् जनताके अज्ञानाधकारको अपहरण करके यथार्थ रीतिसे ज्ञानका आविर्भाव-प्रकट करनेवालोमसे थे । प्रभुने अग्निकी तरह कर्म रूप ईंधनको भी जलाकर अनन्त संसारकी अज्ञान आत्माओंको प्रकट रीतिसे' परिशुद्ध किया । और सूर्यकी सदृश भगवान् महावीर प्रभु अखिल विश्वमें अद्वितीय प्रसिद्धि प्राप्त महापुरुष थे। अधिकतर संसारमें उन दिनों प्रभुकी ज्ञानक्रान्ति ही सव ओर चमक रही थी ॥ ६ ॥ - गुजराती अनुवाद-वीर परमात्मानुं ज्ञान चोथी भूमिकाथी वधीने अनन्तताने प्राप्त थयु, कर्मोनो क्षय थवाथी भगवान् अनन्तज्ञानवाळा थया, सारे संसारना मंगळ समान तेमज रक्षक तेओ थया, वायु समान अप्रतिबंध विहारी, संसार समुद्रने तारनार भगवान् हता, बीजाओने उपदेश दान करीने जन्म मरणथी मुक्त करावनार हता, परिषह तेमज उपसर्ग सहती वखते आपने कोई पण प्रकारनो क्षोम न थवाना कारणे धीरजवान् , अनन्तज्ञानरूप चढवाळा, तथा सूर्य जेम सर्वथी अधिक तपे छे, तेम प्रभु ज्ञाने करी सर्वोत्तम छे, विरोचन अग्नि जेम सळगवाथी प्रकाश करे तथा इन्द्रनी पेठे अन्धकारने दूर करी प्रकाश करे छ, तेम श्रीमहावीर देव पण अज्ञानरूप अन्धकार दूर करी प्रकाश करे छे, अग्मिनी माफक कर्मरूप ईंधणने वाळी अनन्त संसारना अज्ञान आत्माओने प्रगट रीते परिशुद्ध कर्या, अने सूर्यनी पेठे प्रभु अखिल विश्वमा अद्वितीय प्रसिद्धिने पामेल महापुरुप हता, ते दिवसोमां प्रभुनी ज्ञान-क्रान्ति अधिकतर प्रकाशती हती ॥ ६॥
अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं, णेया मुणी कासव आसुपण्णे; इंदेव देवाण महाणुभावे, सहस्सणेता दिवि णं विसिट्टे ॥७॥
संस्कृतच्छाया । अनुत्तरं धर्ममिमं जिनानां, नेता मुनिः काश्यप आशुप्रज्ञः। इन्द्र इव देवानां महानुभावः सहस्रनेता दिवि विशिष्टः ॥ ७॥