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________________ प्रार्थना ' ज्ञातनन्दन सिद्धार्थकुलकिरीट महावीर भगवान्के प्रतिपाद्य धर्मके ११ अंग इस समय भी विद्यमान हैं, उनमें सूत्रकृताङ्ग नाम सूत्र दूसरा अंग सूत्र है, जिसके दो श्रुतस्कन्ध हैं, और उसके पहले श्रुतस्कन्धका छठवाँ अध्याय इस ग्रन्थकी मौलिकवस्तु यह वीरस्तुति है। और यह सूत्र कालिकसूत्र है, इसका खाध्यायः ३२ *अखाध्याय त्याग कर दिन और रातके पहले और चौथे पहरमें खाध्याय होता है। इस अध्यायका मूल पाठतो अव तक कई पुस्तकोंमें छपकर प्रसिद्ध हो चुका है एवं मूल शब्दार्थ और भावार्थ सहित भी गत वर्षों में कई स्थानोंसे प्रकाशित हुआ है। परन्तु मैने वीरस्तुतिकी टीका और भाषा टीका अनेक प्रन्थोंका सन्दोहन * वत्तीस अखाध्याय-चार सध्या [ प्रातः काल १, मध्यान्हकाल २, सध्याकाल ३, मध्यरात्रि ४, ] ओंके समय, चार महोत्सव, चार महा प्रतिपदायें, [चैत्र शुक्ला १५, वदी १, आषाढ शुक्ला १५, वदी १, आश्विन शुक्ला १५, वदी १, कार्तिक शुक्ला १५, वदी प्रतिपदा, १२,] औदारिक शरीर सम्बन्धी १० अखाध्याय [अस्थि-१३, मांस १४, रुधिर १५, पडी हुई अशुचि १६, समीप वर्ति प्रज्वलित श्मसान १७, चन्द्र ग्रहण १८, सूर्यग्रहण १९, ग्राम-शहर का राजा-सेनापति-देशनायक-नगरशेठका मरण २०, राज्य संग्राम २१, धर्मस्थानमें मनुष्य २२ और त्तिर्यच पचेन्द्रियका कलेवर २३,] आकाश सम्बन्धी १० अखाध्याय [ उल्कापात २४, दिशाओंके लाल होनेके समय २५, अकाल गर्जना २६, विजली चमकते समय २७, निर्घात-मेघ के समान गर्जना जैसी व्यन्तरकृत ध्वनिविशेष २८, यूपक-शुकृपक्षकी एकम-दोज और तीजके दिनका सान्ध्यसमय २९, यथालिप्त-अमुक अमुक दिशाओंमें आन्तर आन्तर पर विजली जैसा प्रकाश होते समय ३०, धूमिका-धुवाँ बरसते समय ३१, महिका-गर्ममासमें पड़नेवाली धुंध-कोहरा ३२,] रजोवृष्टि-रज-धूलकी वर्षा तथा शरीरमेंसे रुधिर और खून निकलते समय सूत्रोंके वाचनके प्रतिवन्ध कालमें अखाध्याय जानना योग्य है। इन नियमोंके भंग करने वालेके लिये दंड-प्रायश्चित्त-आदि शिक्षा 'निशीथसूत्रके उन्नीसवें अध्यायसे जानना चाहिये ।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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