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वीरस्तुतिः ।“ . वीरस्तुतिधन धन जनक 'सिद्धारथ' राजा, धन त्रिशला देवी मीत रे प्राणी । ज्यां सुत जायो गोद खिलायो, वर्धमान विख्यात रे प्राणी, - श्रीमहावीर नमो 'वर णाणी,' शासन जेहनो जाण रे प्राणी, प्रवचन सार विचार हिए में, कीजे अर्थ प्रमाण रे प्राणी, २' सूत्र-विनय-आचार-तपस्या-चार प्रकार समाधि रे प्राणी, "" ते करिये भवसागर तरिये, आतम भाव आराधि रे प्राणी,-३ ज्यों कंचन तिहुं काल कहीजे, भूषण नाम अनेक रे प्राणी, '. त्यों जगजीव चराचर योनि, है चेतन गुण एक रे प्राणी, ४ अपणो आप विषे थिर आतम, सोऽहं हंस कहाय रे प्राणी, '' केवल ब्रह्म पदारथ परिचय, पुद्गल भरम मिटाय रे प्राणी, ५ शब्द-रूप-रस गंध-न जामे, नहीं स्पर्श-तप-छांह रे प्राणी, तिमिर-उद्योत-प्रभा-कछु नाही, आतम अनुभव मांहि रे प्राणी, ६ सुख-दुःख जीवन मरण अवस्था, ए दशप्राण संगात रे प्राणी, ' इणथी भिन्न विनयचंद रहिये, ज्यों जलमें जलजात रे प्राणी, ७
भावार्थ-सिद्धार्थ' राजा और 'त्रिशला' देवी राणीको धन्यवाद है, जहा 'वर्धमान जैसे पुत्र उत्पन्न हुए, उन्होंने अपने अकमें उसको खिला रमा कर अपनी होस पूरी की, और वर्धमान नामसे तो तीनों लोकमें विख्यात हुए, अपर नाम महावीर भगवन् ! जो श्रेष्ठ और निर्मल केवलज्ञान युक्त हैं, जिनका इस समय शासन काल प्रचलित हो रहा है, और भावी कालमें भी १८५०० वर्ष तक चलेगा, उन्हें मेरा योग और करणकी शुद्धिसे नमस्कार है, जिनके प्रवचनका सार आत्मभान और परमात्म विचार है । यदि उसका मनन और निदिध्यासन किया जाय तो यह आत्मा मोक्षकी पूर्ति शीघ्र ही कर सकता है।
ज्ञात-नन्दन महावीरप्रभुने 'सूत्र' 'विनय', 'आचार' और 'तपस्या' ये चार प्रकारकी समाधि भव्य प्राणिओंके कल्याणके अर्थ प्रतिपादन की हैं,