________________
१८०
वीरस्तुतिः। संत्रियोनो सूचक छे, एम सप्रमाण वताव्युं छे, आगळ ऊपर वळी तेओ एम पण वतावे छ के 'ज्ञातृजाति' लिच्छविओनी शाखा हती। अने वैशालीनी आजु. माजुमा रहेती हती, औ ज्ञातृजाति आजे पण वैशाली नगरी [जिल्ला मुजफ्फरपुरनी अंदर वसाडनी पासे छे] नी आसपास जथरिया नामे जाति वसे छे, आ जयरिया शब्द भाषा दृष्टिए पण ज्ञातृशब्दनी साथे गाढ संवन्ध धरावे छ ।
__ जयरिया शब्द 'ज्ञात' शब्दनो अपभ्रंश जणाय छे, ज्ञातृमांथी 'जथरिया' शब्द केवी रीते वनवा पाम्यो ते सवंधमां भाषा दृष्टिए उक्त राहुलजीए नीचे मुजब विचार कर्यो छे।
ज्ञात-आति, ज्ञातृ-ज्ञातर-जातर-जतरिया-जथरिया जैथरियाना गाममां 'नादिका' ज्ञातृका=नत्तिका-लत्तिका-रत्तिका-रत्ती जे नामथी वर्तमान रत्ती परमणा [ जि० मुजफ्फरपुर] छ । बुद्धचर्या पार्नु ५२८ ॥
मा रीते 'जथरिया' शब्द 'ज्ञातृ' नो अपभ्रंश छे। राहुलजी आ रत्ती परगणानुं मूल नाम पोताना उपरोक्त उल्लेखमां आवेला 'नादिका' शब्दथी उत्पन्न थयेलं वतावे छ।
. आ प्रकारे 'जथारेया' अने तेमनुं स्थान रत्ती ए बने शब्द ज्ञात शव्दनी साथे गाढ संबंध धरावे छे, अने आ संबंधथी जथरिया ज्ञातृक ज्ञातृवंशीज छे, अने तेमनुं प्राचीन निवासस्थान के जे नादिका अथवा नाटिका नामथी ओळखाय छे ते वर्तमान रत्ती परगनुं छे, एवो राहुलजीनो दृढ अभिप्राय छ । वळी तेमना आ अभिप्रायमां बीजीवात ए पण छे के आ 'जथरियार्नु मूळ गोत्र काश्यप छे, ते काश्यप गोत्र भगवान् महावीर अने तेमना ज्ञातृवंशी क्षत्रियो, पण हतुं ।
- आ जथरिया ज्ञातृ वंशी क्षत्रियोना संबंधमां श्रीराहुलजी बतावे छे के आ 'जथरिया' लोको वर्तमानमा पोताने ब्राह्मण कहेवटावे छे, तेयो दान लेता नथी, [पंजावमा जमना किनारे वसनारी एक जाति रहे छे ते पण दान नथी
ती ते देशमा तेमने 'तगा' कहे छे, संभव छ के ते शब्द त्यागीनो अपभ्रंश होय, पण तेओना गोत्रो गोड ब्राह्मणोधी मळी आवे छे ] अहीं तो जरिया जातिना लोकोने भूमिहार ब्राह्मण कहेवामां आवे छ । परन्तु वीजा लोको तेमने जाह्मण मानता नथी । तेथी स्पष्ट मालुम पडे छे के वास्तवमा तेओ क्षत्रिओज