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वीरस्तुतिः ।
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ब्रह्मचर्य से ही पुजता है - ब्रह्मचर्य सच्चरित्रका प्राण है, परब्रह्मके पानेमे निमित्तरूप है, जो ब्रह्मचर्यका समाचरण करते हैं, वे पूज्य पुरुषोंद्वारा पूजित होते हैं ।
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ब्रह्मचर्य का फल - वडी आयु, सुडौल शरीर, शरीर पर विलक्षण तेज, महान् शक्ति, यशः कीर्ति, प्रतिष्ठापात्रता, ये सब ब्रह्मचर्य से प्राप्त होते हैं ।
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शरीरकी दृढतर रचना, ' ससारमें मान मर्यादा,
इसी प्रकार सव लोकोंकी उत्तम रूप सम्पदा पाकर तथा सर्वातिशायी क्षायिक ज्ञान दर्शन शीलशाली पुरुषोंमें 'ज्ञात वंश में जन्म प्राप्त, अन्तिम जिनेंद्र श्रमणमहात्माओं में प्रधानतम थे ।
महावीरके नाम-श्रमण भगवान् महावीर प्रभुके वर्धमान, विदेहदिन्न, ज्ञातपुत्र, काश्यप, वैशालिक, महावीर, सन्मति, श्रमण, भगवान् इत्यादि अनेक नाम थे । ये सब नाम उनकी अमुक अवस्थाके सूचक हैं। क्योंकि भगवान् महावीर स्वामीका जीवन सासारिक अवस्था और साधक अवस्थामै विभक्त है । वर्धमान, विदेहदिन (महावीर प्रभुकी माताका नाम 'विदेहदिन्ना' भी था " तिसला ति वा, विदेहदिन्ना ति वा, पियकारिणी ति वा - ( आचाराग २-१५ १३ ) । त्रिशला माता विदेहमें जन्मीं थीं जिससे उनका नाम विदेहदिन्ना था । अतः माताके इसी नाम पर महावीर प्रभुका मातृपक्षका नाम भी विदेहदिन्न पढ गया था, ज्ञातपुत्र, काश्यप और वैशालिक ये ३ नाम उनकी सासारिक अवस्थाको बता रहे हैं । महावीर, सन्मति, और श्रमणभगवान् ये तीन नाम उन्होंने साधक अवस्थामे अपने आत्मवीर्यादि गुणोंसे प्राप्त किए हैं, 'वर्धमान' पिताके पक्षका नाम था, और विदेहदिन्न मातृपक्षका नाम था । ज्ञातपुत्र यह 'वंश' सम्वन्धी नाम था, काश्यप 'गोत्र' का नाम था, और ‘वैशालिक’ जन्मस्थानके सम्बन्धका 'अर्थसूचक' नाम है, तब महावीर नाम उनके आत्म वीर्यका, सन्मति उनके आत्म ज्ञानका और 'श्रमण भगवान्' नाम श्रमण संस्कृतिके तात्कालीन अग्रसर रूपक 'अर्थसूचक' नाम है ॥ २३ ॥
शातृपुत्र - उपर्युक्त सव नामोंमें भगवान् महावीरके 'ज्ञातपुत्र' नामके विषय में हमको विचार करना है, यह ' ज्ञातपुत्र' नाम उनके वंशका सूचक है, यह बात जैनागम और बौद्धागममे ठौर २ कही गई है ।
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