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मुणि सिरि उवज्झाय आयारामस्स सम्मइ
मए वीरत्थुइ नामा लहुवी पोत्थियं अवलोइया, सा थुइ पोत्थिया भत्ति भावेण अलंकिया, पोत्थिया भत्तिभावेण विनस्सा, अम्भुअरसस्स प्पयाण कत्ताजहावि कइ वाहं विसएसु मयमेयोऽत्थि किन्तु कत्तुणा भत्तिभावं अणुवमं दंसिता। मम मणो अईव प्पसन्नभूओ, कतुणो पुणो पुणो धनवायं देमि । जेण अइपरीसमेण भत्तिवसेण अईव सग्गह कटु, जणयाए भत्तिमग्गं पदंसिया। सत्थेवि उत्तं, अरिहंताइणां भत्तिभावेण जीवो तित्ययर नामगोयं कम्मं निबंध इयं रयणा संदराऽत्थि, भव्वजणाण अवस्समेव भणणिज्जो, कत्तुणा जहाठाणे अईवउवओगी उद्धरणाणं पससणिज्जो सग्गह कडं, तहा उत्तरज्झयणस्स तवमग्गोऽवि उत्तं, 'गुरुमत्तिभावसुस्सूसा, विणओ एस वियाहिओ' एवं वीरमत्ति वा वीरत्थुइ वि विणयरूवोऽत्थि, तहा उत्तराज्झयणस्स एगूणतीसाए अज्झयणं थूइस्स एवं फलं वण्णिअ जहा-"थय थुइमगलेणं भंते जीवे कि जणयइ? थ० नाणदंसणचरित्तबोहिलामं जणयइ। नाणदंसणचरित्तवोहिलाभसपने य णं जीवे अन्तकिरियं कप्पविमाणोववत्तिगं आराहणं आराहेइ ॥१४॥ अओ वीरत्थुइ अवस्स भणणिज्जो। १९९६ सावणसुक्का एगादसी, सुकवारे,
आयारामो लुहियाणा णयरे, उवज्झाय जइणमुणि
देहली शहर महावीर जैनभवन
ता० २७ अगस्त १९३९ ई० शान्तखभावी, वैराग्यमूर्ति, विद्वान् श्रीमजैनाचार्य पूज्यश्री खूबचन्दजी म० सावकी सम्मति - ८ ' "वीरस्तुति " नामक पुस्तक भाई पचमलालजी द्वारा पठनार्थ मिली, पुस्तक सरसरी नजरसे देखी, अहिंसाके अवतार भगवान् महावीर प्रभुकी स्तुति मूल गाथाओंके साथ हिन्दीभाषामे अच्छे ढगसे लिखी है। वर्तमान समयमें ऐसे २ शुद्ध हिन्दीभाषायुक्त धार्मिक साहित्यकी विशेष आवश्यकता है। ' जैनधर्मोपदेष्टा विद्वान् मुनिश्री फूलचन्द्रजी ने वीरस्तुति लिखनेका स्तुत्य कार्य किया है। आशा है खाध्यायप्रेमी महानुभाव इस वीरस्तुति पुस्तकके खाध्यायसे आत्मकल्याणका लाभ अवश्य उठायंगे। अस्तु ।
हस्ताक्षर-आर्य जैन सुखमुनि द्वितीय श्रावण शु० १३, रविवार, सं० १९९६