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वीरस्तुतिः। - भावार्थ-कृष्ण-वासुदेवसे बढकर अन्य कोई योद्धा नहीं है, गन्धयुक्त 'फूलोंमें कमल अच्छा होता है, समस्त भूमिके क्षत्रियोंमें चक्रवर्ती मुख्य कहलाता है, उसी भाति भगवान् महावीर उस समयके सव ऋषि-मुनिओंमें सर्वश्रेष्ठ थे ॥२२॥
भापा-टीका-लडाके वीरोंमें पुष्कल हाथी, घोडे रथ पैदल आदि चतुरनीकका आधिपत्य भोक्ता अर्धचक्री वासुदेव कृष्ण प्रधान होता है । फूलोंमे हजार पंखुडियोवाला अरविंद नामक कमल श्रेष्ठ है। सताए गए वे मनुष्य जिसके ' कि-शत्रुओंने हृदयके सैंकडों टुकडे कर डाले हैं। तथा उन (कर्म रूपी) शत्रुओंसे जो सुरक्षित रखनेवाला हो वही क्षत्रिय होता है । उन्हींको दीप्तिमान राजा कहा जाता है। उनमें उपशान्त गुण प्रधान होता है जिसके कथन मात्रसे शत्रु शिथिल पड जाते हैं वही चक्रवर्ती भी होता है अत एव वह सवमें मुख्य है। इसी प्रकार इन सुन्दर दृष्टान्तोंको जिनपर अनायासमें ही घटाया जाता हो ऐसे वे हमारे परम पवित्र वर्धमानखामी अन्तिम जिन-भगवान् सव ऋषिमहर्षियोंमें श्रेष्ठ थे ॥ २२ ॥
गुजराती अनुवाद-योद्धाओमा गज-अश्व-रथ-पायदल, ए चतुरगी सेनानो अधिपति अर्ध चक्रवर्ती वासुदेवकृष्ण सर्वोत्तम छे, फूलोमा हजार पाखडीवाळु अरविंद कमल श्रेष्ठ छे, शत्रु (कर्मरूपी शत्रु) थी रक्षा करनार क्षत्रिय कहेवाय छे, तेने दीप्तिमान् राजा कहे छे, तेनामा उपशान्त रस प्रधान होय छ, जेना कथन मात्र थी शत्रु शिथिल थई जाय छे, ते चक्रवर्तीज होय छे, ते सर्वोत्तम छे, तेवीज रीते आवा सुन्दर-दृष्टान्तो जेना पर घटी शके ते अमारा परम पवित्र, पतित पावन, जगदुद्धारक वर्धमान भगवान् अन्तिम जिन सर्व ऋषिओमा श्रेष्ठ छे ॥ २२ ॥
दाणाण सेठं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवजं वयंति। तवेसु वा उत्तमवंभचेरं, लोगुत्तमे समणे णायपुत्ते ॥ २३ ॥
संस्कृतच्छाया , दानानां श्रेष्ठं अभयप्रदानं, सत्येपु वाऽनवयं वदन्ति । तपस्सु वोत्तम ब्रह्मचर्य, लोकोत्तमः श्रमणो ज्ञातपुत्रः ॥ २३ ॥