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________________ १०२ . वीरस्तुतिः। पतिदेवानां क्रीडास्थानम् , "शाल्मले शाल्मलीवृक्ष इति हैमः" यस्मिन् वृक्षे व्यवस्थिता अन्यतश्चागत्य सुपर्णा-मुवनपतिविशेषा देवा । रति रममाणा रतिं रमणं क्रीडां वेदयन्त्यनुभवन्तीति । वनेषु मध्ये नन्दनं देवानां क्रीडास्थानं श्रेष्ठम् प्रधानं "नन्दनं, मिस्सकं, चित्तलता, फारुसकं, वना इत्यभिधानप्पदीपिका" । एवं भगवान् वीरोऽपि केवलाख्येन ज्ञानेन समस्तपदार्थाविर्भावकेन शीलेन चारित्रेण यथाख्यातेन स्वभावेन सहजधर्मविशेषेण सद्वत्तेन साधुचरित्रेण प्रधानस्तथा भूतिप्रज्ञः प्रवृद्धज्ञानोऽनन्तज्ञानो भगवान् इति भावः ॥ १८ ॥ ___ अन्वयार्थ-[जह ] जैसे [ रुक्खेसु] वृक्षोंमें [ सामली ] शाल्मली वृक्ष [वा ] तथा [वणेसु] वनोंमें [नंदणं ] नन्दनवन [ सेठं] श्रेष्ठ [ णाए] समझा जाता है [जस्सिं] जिसमें कि-[ सुवन्ना] सुपर्ण-कुमार नामक भुवनवासी देव [ रतिं] आराम क्रीडाका [वेदयती ] अनुभव करते हैं उसी प्रकार भगवान् [नाणेण] ज्ञानसे [य] और [सीलेण] चरित्रसे श्रेष्ठ तथा [भूइपने] प्रभूत. ज्ञानशाली [आहु ] कहलाते थे ॥ १८ ॥ भावार्थ-वृक्षोंमें सेमलवृक्ष सुंदर सघन छाया युक्त होता है, यह वृक्ष पृथ्वीकायिक और नित्य है। तथा ससारके समस्त वनोंमें नन्दनवन खूबसूरत है, क्योंकि कथित दोनों स्थानोमें रहनेवाले तथा वाहरसे आनेवाले सुपर्णकुमार जातिके भुवनवासी देव, आनन्दमें आमोदप्रमोदसे अनेकप्रकारका विलास करते हैं, उसीप्रकार भगवान् महावीर प्रभु भी सबमें उत्तम थे, कारण उस समय प्रभुके मुकावलेमें उनके ज्ञान और चरित्रकी वरावरी करनेवाला कोई भी व्यक्ति न था, इसीलिए सेमल और नन्दनवनकी उपमा देकर भगवानकि स्तुति की गई है ॥१८॥ भाषा-टीका-शाल्मली वृक्षकी शीतल छाया होनेसे वह सब वृक्षोंमें श्रेष्ठ है, और वह भुवनवासी देवोंका क्रीडा स्थल है, । वनोंमें जिसप्रकार नन्दनवन उत्तम वन है,,इसी प्रकार भगवान् 'महावीर प्रभु भी केवलज्ञानके कारण श्रेष्ठ हैं, जिससे सर्वपदार्थोका उन्हें प्रत्यक्ष आविर्भाव है । ज्ञानके साथ साथ उनमें यथाख्यात चरित्रमें भी 'पूर्णश्रेष्ठता प्राप्त है । जोकि आत्माका 'सहज खंभावं समन्वित गुण है ॥ १८॥
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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