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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता ९५ - [४] पुरुषों में भी उनको मारना चाहिए जिनके हाथोंमें शस्त्रहों, निश्शस्त्र शत्रुका मारना नीतिविरुद्ध है। । [५] उसी शस्त्र-धारीको मारा जायगा जो हम पर आक्रमण करेगा, - [६] शत्रुको छोडकर भूलकर भी किसी निरपराधके ऊपर हाथ न डाला जाय।
इस प्रकार मिन २ विचार मिन्न २ लेश्याओंके द्वारा होते हैं, अनुक्रमसेपवित्र विचारों द्वारा जो कर्मरूपी शत्रुके अतिरिक्त अन्य सबकी रक्षाकरता हो. वही नरपुंगव सबमें प्रधान और उत्तम है। __ इसी प्रकार भगवान् वीर प्रभुका मी शुक्ललेश्या युक्त ध्यान है, जिसमें निर्दोष
आत्म द्रव्य अर्थात् आत्माका अन्तरग भाव खच्छ है। जिनका पवित्रध्यान चन्द्रमा और शंखकी तरह उज्वलवर्ण है, इस प्रकारके शुक्लध्यानका उपदेश संसारकी आत्माओंके हितार्थ प्रभुने खयं किया है ॥ १६ ॥
गुजराती अनुवाद-जेमा राग द्वेषनो त्याग होय, एवा ज्ञानपूर्वक त्याग, वैराग्य, सयम, खामिमान, सहानुभूति विगेरे गुणो होय, एवो धर्म मानव जीवनने उन्नत बनाववा माटे ससारमा सर्वोत्कृष्ट गणाय छे ते धर्मने प्रगट करवाने माटे प्रभुए उपदेश आप्यो के जे अमेद रूपे हतो। वळी ते धर्म प्राणिमात्रने माटे कहेलो हतो। तेनी सिद्धिने माटे तेओए उत्कृष्ट ध्याननो आश्रय लीधो । तेना फल खरूपे तेमने केवलज्ञान प्राप्त थयुं । ते पछी पण मन, वचन, कायना योगोर्नु निरुधन करवाना समये सूक्ष्म काय योगने रोकीने शुक्लध्याननोत्रीजो पायो प्राप्त करवानो आरम्भ कर्यो, जे स्थितिमा मन-वचनना व्यापारोने रोकी देवामा आवेछ, तथा काय योगनो पण अ| भाग रोकाई जाय छ । आ शुक्लध्याननो त्रीजो पायो वेरमे गुणस्थाने वर्तता जीवोने होय छे । अने जे स्थितिमा मन वचन कायनी अप्रतिपातिरूप निवृत्तिथई जाय छे ते शुक्लध्याननो चोथो पायो छ ।
कर्मरहित केवलज्ञानरूपी सूर्यथी पदार्थोनो प्रकाश करवावाला सर्वज्ञ भगवान्नु ज्यारे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयुष्य बाकी रहीं जाय छे, त्यारे सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाति नामे शुक्न ध्यानने तेओ योग्य बनी जाय छे ते समयनी स्थिति अचिन्य होय छे । बादरकाय योगमा स्थिति करीने वादर वचनयोग अने वादर मनोयोगने ते सूक्ष्मतम करे छ 1 वळी भगवान् काययोग सिवाय वचनयोग, मनोयोगनी स्थिति सूक्ष्म करीने बादर काययोग पण सूक्ष्म करे छे। ते पछी सूक्ष्मकाययोगमा स्थिति करीने क्षणमात्रमा तेजे समये वचनयोग अने मनोयोग