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वीरस्ततिः।
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तेजोलेश्या
यह पुरुष समदृष्टि होता है, अधिकमात्रामें द्वेष नहीं रखता, औरोंके कल्याण और अहितको सोचता हैं, अपने युद्धि वलसे युक्त और अयुक्तका ज्ञान कर लेता है, किसी अन्यकी शोचनीय दशा पर उसे दया आजाती है, चातुर्य्यता पूर्ण और अनिन्द्य व्यवहार है, ये पीतलेश्याके लक्षण हैं। यमलेश्या
कर्मकी निर्जरा करके पवित्र होनेकी प्रबल इच्छा हो, सुपात्रोंमें सात्विक दान वितरण करके सहजानन्द लूटता हो, जिसका अन्तर और वाह्य अत्यन्त मृदु और सरल हो, आत्मामें सदैव विनय और नम्रता रहती हो, शत्रुओंका प्रेमसे आदर करता हो, आत्म ज्ञानको उदयमें लाना ही जिसका ध्येयहो, सच्चरित्र पालक साधु हो तो समझो कि इसमे. नीति युक्त क्रिया है, यह पद्मलेश्याका लक्षण है। शुक्ललेश्या
अमिमानका लेश तक न हो, अपने चरित्रका फल मागनेकी अमिलाषासे निदान न करता हो, पक्षपातका अत्यन्त अभाव हो, सम्यग्ज्ञानकी पूर्णता हो, रामद्वेषका अत्यन्ताभाव हो, समाधि और अध्यात्मिकतामें स्थायी भाव हो, आस्तिक्यता हो, ये लक्षण शुक्ललेश्याके हैं,।
तेजोलेश्या, पद्मा और शुक्ला ये तीन प्रशस्त लेश्या हैं, क्रमसे' सवेगको उत्तम रीतिसे वढानेमें सहायिका हैं, . इन्हें उदाहरणसे समझाते हैं,
चोरोंका एक समुदाय किसी ग्रामको लूट कर भाग गया, तव उस वस्तीके लोकभी उनसे बदला लेनेकी इच्छासे अपने समुदायको संगठित बनाकर चले जा रहे थे उनमें छ. आदमी अलग २ छ. प्रकृतिके थे। रस्तेमें चलते २ पहले ने यह कहा कि- - - .. [१] हम सब वहां जाकर सारे ग्रामके जीवोंको मार देंगे, उनकी पली हुई चिडिया तकको भी न छोड़ेंगे। . [२] दूसरेने कहा हम उनके पशु पक्षियोंको कुछ न कहेंगे।
[३] उनकी स्त्रियोंको कुछभी कष्ट न देंगे। क्योंकि औरोंकी वहु बेटिएँ अपने जैसी ही होती हैं।