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आध्यात्मिक चेतना
बन्धुओ, सूत्र क्या है? शब्दो का भडार है । यदि इस भडार को हम सावधानी के साथ सभाल करके रखें तो हमे ज्ञान की प्राप्ति हो, जनता की बुद्धि का विकास हो और इन्ही के आधार पर नवीन-नवीन ग्रन्थो की रचना होकर ज्ञान के मडार की अभिवृद्धि भी होती रहे । इसके लिए मवसे पहिली आवश्यकता है इस सून-भण्डार को सुरक्षित रखने की ! इसे सुरक्षित कैसे रखना ? क्या वस्त्रो मे बाध करके लकडी की अलमारियो में रख करके अथवा लोहे की तिजोडियो मै बन्द करके ? नहीं, ये तो द्रव्य सूत्र की रक्षा के उपाय हैं, भाव सूत्र की रक्षा के नही । भाव सूत्र की रक्षा के लिए आवश्यक है कि हम इन सूत्रो का पठन पाठन करें, मनन-चिन्तन करे और ज्ञान के विनाशक अतिचारो से बचे रहें । भाव सून की रक्षा तभी संभव है, जब कि हमारा आभीक्षण्य ज्ञानोपयोग हो, हमारे हृदय मे ज्ञान की धारा निरन्तर प्रवाहित रहे और हम अध्यात्म मे सदा जागरूक रहे । जिसका भगवद्-वाणी पर विश्वास है, दृढ श्रद्वा है वही व्यक्ति अपने स्वरूप को देख सकता है। कहा है--- 'जिनेश्वर तणी वाणी जाणी तेने जाणी है।
___ वाणी हृदयंगम करो जिनेश्वर देव की वाणी अनेक लोग वाचते हैं । परन्तु उसको हृदयंगम करने वाले लाखो मे दो चार ही मिलेंगे । भगवान की वाणी या जो आशय है,
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