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सिंहवृत्ति अपनाइये !
३०६ कायरता इस प्रकार कूट-कूट कर भरी हुई है कि वीरता उससे कोसों दूर है।
भाई,
कायरता किण काम रो, निपट बिगाड़े नूर।।
आदर में इधकी पड़े, घोबा भर भर धूर -! लोग सांसारिक सुख के पीछे ऐसे मतवाले हो रहे है कि धर्म को भूल जाते हैं । उन्हें यह याद रखना चाहिए कि ----
जो संसार-विर्षे सुख होता, तीर्थकर क्यों त्यागै ?
काहे को शिव-साधन करते संयम सौ अनुरागै ॥ यदि संसार में सुख होता तो तीर्थंकर भगवान भी अपने असीम राज्य वैभव को छोड़कर क्यों संयम से अनुराग करते और क्यों शिव की साधना करते ! भाई, संसार में तो कभी सुख है ही नहीं । चाहे-तीसरा आरा हो
और चाहे चौथा आरा । उस समय भी इस संसार में सुख नहीं था, फिर आज तो यह पंचम दुपमा आरा है, यह कलिकाल है, इसमें आप लोग सुख पा ही कैसे सकते हैं। इसलिए सुख पाने की कल्पना को छोड़ दो। यदि सच्चा और आत्मिकसुख पाना है तो अपने व्रत और नियम पद दृढ़ रहो। जो सिंह के समान दृढ निश्चयी और शूरवीर पुरुष होते है, वे अपने व्रत और नियम को हजारों कष्ट और आपदाएं आने पर भी यथाविधि निभाते हैं। ___ दूसरी जाति के मनुष्य हाथी के समान होते हैं । हाथी मे मस्तानी भरी रहती है । वह अपनी धुन में इतना मस्त रहता है कि उसके पीछे हजारों कुत्ते भौंकते रहें तो वह उनकी परवाह नहीं करता है। और अपनी मस्तानी चाल से आगे को चलता रहता है । इसी प्रकार जो मनुष्य हाथी जैसी प्रकृति के होते हैं, वे हानि-लाभ, जीवन-मरण और सुख-दुख आदि सभी अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में समभाव को रखते हुए आगे बढते रहते है। यदि आप लोग सिंह के समान नही बन सकते तो हाथी के समान ही बन जावें। आपके जीवन में भले ही कितने उतार-चढाव आ, पर आपको चाहिए कि सम्पत्ति में फूलें नहीं, विपत्ति में झूरे नही। इस हाथी जैसी प्रकृति के लोग सदा समभावी रहते हैं । उनको महापुरुपों ने ज्ञाता पुरुष कहा है
पूरब भोग न चिन्तव, आगम वांछा नांहि । वर्तमान चरते सदा, ते ज्ञाता जगमहि ॥