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प्रवचन-सुधा
जो व्यक्ति सिंह के समान होते हैं, उनको भयावनी रात में बन मे, मसान मे या कही भी जाने के लिए कह दो, वे कही भी जाने से नहीं हिचकते हैं। किन्तु जो कायर पुरुप होते है, वे रात मे घरके वाहिर पेशाब करने के लिए जाने में भी डरते है। पुरुपसिंह जिस कार्य के करने में सलग्न हो जाता है, वह कभी पीछ नहीं हटता, भले ही प्राण चले जावें । जो सिंह के ममान वृत्ति वाले पुरुप होते हैं, वे मदा दृढनिश्चयी होते है ! उन जैसे व्यक्तियो के लिए कहा जाता है कि --
चन्द्र टरे सरज टरे, टरे जगत व्यवहार ।
पै दृढ व्रत हरिश्चन्द्र का, टरे न सत्य विचार ।। और ऐसे ही पुरुपसिंहो के लिए कहा जाता है
रघुकुल-रीति सदा चल आई,
प्राण जायें, पर बचन न जाई । भाई, सिंहवृत्ति वाले मनुष्या की यही प्रकृति होती है कि प्राण भले ही चले जावें पर वे अपने दिये वचन से पीछे नहीं हटते हैं और लिये हुए प्रण या प्रतिज्ञा का मरते दम तक निर्वाह करते हैं । सिंह वृत्ति मनुष्य जिस कार्य को करने का निश्चय कर लेता है, उसे पूरा करके ही रहता है । भगवान महावीर स्वामी को ही देखो-जब उन्होने साधु वेष धारण कर लिया तो साढ़े बारह वर्ष तक लगातार एक से एक वढकर और भयकर से भयकर उपसर्ग उनके ऊपर आते ही रहे । मगर वे अपने साधना-पथ से रच मात्र भी विचलित नही हुए। तभी वे दिव्य केवल ज्ञानी और केवल दर्शनी बने और अनन्त गुणो के स्वामी होकर अपने उद्धार के साथ तीन जगत का उद्धार किया ।
कायरता छोडो आज आप लोगो में से किसी से यदि पूछा जाय कि भाई कल सामायिक क्यो नहीं की, तो कहते हैं कि क्या करे महाराज, 'जीव को गिरह लगी हुई है। कि सामायिक करने का अवकाश ही नही मिला । कोई कहेगा-महाराज, आज स्त्री इस प्रकार लडी कि सामायिक करने का मन ही नही हुआ । तीसरा कहेगा कि महाराज, सौ का नोट जेव से किसी ने निकाल लिया और चौथा कहेगा कि आज जमाई की बीमारी का तार आने से जाने की तैयारी मे लगा रहा । इस प्रकार अपना अपना रोना रोकर कहेगे कि महाराज, इस कारण से सामायिक नहीं कर सके । मैं पूछता हूँ कि स्त्री, जमाई या सौ का नोट तुम्हारा उद्धार कर देंगे और तुम्हे मोक्ष में भेज देंगे ? नहीं भेजेंगे । परन्तु मनुष्य में