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प्रवचन-सुधा
अश्व के समान पुरुष तीसरी जाति के पुरुप घोड़े के समान होते हैं । घोड़े का स्वभाव चंचल होता है और वह इशारे पर चलता है । इसी प्रकार जिनकी बुद्धि चंचल और तीक्ष्ण होती है, वह प्रत्येक तत्त्व को शीघ्र पहिचान लेता है । कहा जाता है कि घोड़ा जिस मार्ग से अंधेरी रात में एक बार भी निकल जावे तो वह भूलता नहीं है और यदि छोड़ दिया जावे तो वापिस अपने स्थान पर पहुंच जाता है । इसी प्रकार घोड़े के समान जिस व्यक्ति का स्वभाव होता है, वह गुरुजनों के द्वारा बतलाये गये सुमार्ग पर नि.शंक होकर चला जाता है । जिस प्रकार घोड़ा अपने ऊपर सवार के प्रत्येक इशारे को समझता है और तदनुसार चलता है, उसी प्रकार इस जैसी प्रकृति वाले पुस्प भी गुरु के प्रत्येक अभिप्राय और संकेत को समझकर तदनुसार चलते है । चंचल और तीक्ष्ण बुद्धि वाला पुरुष प्रत्येक परिस्थिति में अपने अभीष्ट और हितकारी मार्ग का निर्णय कर लेता है। जैसे घोड़ा अपने शत्रु सिंह आदि की गन्ध तुरन्त दूर से ही भांप लेता है, उसी प्रकार इस जाति का पुरुप भी आने वाले उपद्रवों को तुरन्त भांप लेता है और उनसे बचने के लिए सतर्क हो जाता है। मनुष्य के भीतर इस गुण का होना भी आवश्यक है।
धीर पुरुष : वृषभ समान चौथी जाति के पुरुप वृपभ (बैल) के समान होते है । जैसे बैल अपने ऊपर आये बोझ को शान्त भाव से वहन करता है और गाड़ी में जोते जाने पर अभीष्ट स्थान तक गाड़ी को ले जाता है, उसी प्रकार इस प्रकृति के मनुष्य भी अपने अपर आये हुए कुटुम्ब के भार को, समाज के भार को और धर्म के भार को शान्तिपूर्वक अपना कर्तव्य समझकर वहन करते हैं। वैल की प्रकृति भद्र होती है और गाड़ी को नदी पर्वत और वन में से निकालकर पार कर देता है, उसी प्रकार वृषभ जाति का मनुप्य भी आने वाले मार्ग के संकटों से बचाता हुआ कुटुम्ब था और अपना निर्वाह करता है । मारवाड़ में बैल को धोरी इसीलिए कहते हैं कि वे चलने मे डरते नहीं है और अपने मालिक को अभीप्ट स्थान पर पहुंचा देते है । जो वृपभजाति के मनुष्य होते हैं उन पर कुटुम्ब का, समाज का, देश का और धर्म का कितना ही भार क्यों न आजावे, परन्तु वे उससे घबड़ाते नही है और अपना कर्तव्य पूर्ण करके ही विश्राम लेते है । इस प्रकार सिंह, हाथी, अश्य और वृषभ के समान चार जाति के मनुष्य होते हैं।