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प्रवचन-सुधा
प्रकार के ? इस प्रसार से जिसके विचार क्षण-क्षण मे बदलते रहते हैं, तो उम व्यक्ति के सर्व ही कार्य व्यर्थ है। इसलिए पहले शान्ति के साथ, गभीरता के साय सोचकर फिर दृटता के माथ और तेजी से उम कार्य पर अमल करना चाहिए।
परवशता से प्रतिकूल आचरण भाइयो, कभी-कभी ऐमा भी अवसर माता है कि मनुष्य के विचार तो उत्तम है, किन्तु नौकरी, आदि की परवशता से प्रतिपूल कार्य भी करने पडते हैं । जैसे कोई सरकारी नौकरी में हैं और उसे ऊपर के अधिकारियो के आदेश के अनुसार अनक आरम्भ-ममारम्भ को महापाप करने पड़ते हैं । ऐमी दशा म वह उन आदेशो का पालन करता हआ भी यदि अपने भीतर प्रतिक्षण यह सोचता रहता है कि यदि मुझे दूसरी असावद्य नौकरी मिल जाती, जिसमे कि ऐसे आरम्भ-समारम्भ के काम न करना पट ! तो मैं इसे तुरन्त छोड देता । हे प्रभो, मुझे ऐसे पाप पूर्ण कार्य करने का अवसर ही क्यो आया ? इस प्रकार से यदि वह पश्चात्ताप करता है और इस नौकरी को बुरी जानकर उसे छोड़ने की भावना रखता है तो वह महापापो से नही बघता । हा, लघ पापकर्म से तो वधता ही है। जैसे एक मायर का दारोगा हे और उसके पास अधिकारी का आदेश आता है कि आज इतने पशुओ की चिट्ठी काटी जावे । अब वह नौकरी की परवशता मे चिट्ठी काटता रहा है, परन्तु हृदय से नही काट रहा है । भीतर तो अपन इस कार्य को बुरा ही मान रहा है और अपनी निन्दा ही पर रहा है-अपन आपनो धिक्कार रहा है, तो वह प्रवल कर्मों को नही बाधेगा । पर कर्मों का वाय तो है ही, इसमे कोई सन्देह नहीं है । दूसरा व्यक्ति इसी प्रकार के अवसर पर विना किसी सोच-विचार के चिट्ठी काटता है और उसके मन मे अपने इन कार्य के प्रति कुछ भी गहरे या निन्दा का भाव नहीं है, तो वह तीन पाप कमों को ही वाधेगा। क्योकि इसे अपने कार्य के प्रति कोई घणा या पचात्ताप नही है। भाई, इस प्रकार से ऊपर से एक ही कार्य करते हुए भी आन्तरिक भावो की अपक्षा कर्म-बन्ध मे अन्तर पड़ जाता है।
कम बध मे मन्दता अयवा से आप छोटे भाई या लल्फे न कोई गलत काम किया । बापये पास टमना उपाभ आया और आपने उसे दो एक बार समझाया और बगग ने ऐसा काम नहीं करने को कहा। फिर भी यदि वह नहीं माना और आगे दवाग भी यही मन्ना है तो आपने उमे यप्पड या लकड़ी मार दी। तथा मिनी मान मे नद्ध होकर और प्रतिशोध की भावना से सानु