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धर्मादा की संपत्ति
वन्धुओ, मनुष्य के विचार उसकी योजना के प्रतीक होते हैं। जब कोई भी कार्य करना होता है, तब उसके लिए पहिले विचार किया जाता है कि यह कार्य किस प्रकार किया जाय ? इसकेलिए नीति शास्त्र में एक विधि बतलायी गयी है
स्वन्तं किन्नु दुरन्तं का, किमुदकं वित्तवर्यताम् ।
अक्तिमिदं वृत्तं तर्करुढं हि निश्चलम् ॥ अमुक कार्य करने का फल उत्तम सुखान्त होगा, या दुखान्त । अर्थात् हम जिस कार्य को करना चाहते हैं वह आगामी काल में उत्तम फल देगा, या दुःख रूप फल देगा, यह किसी कार्य को करने के पहिले विचारना चाहिए। . जो बात अतकित है, अर्थात् जिस पर तर्क-वितर्क या ऊहापोह नहीं किया गया है, वह तर्क की कसौटी पर कसने से निश्चल या दृढ़ हो जाती है ।
इस नीति के अनुसार जो कार्य हमारे सामने है, उसका विचार करना चाहिए कि यह शुभ है या अशुभ ! धर्म का साधक है, या वाधक ? सौजन्य पूर्ण है, या दौर्जन्य पूर्ण ? भले-बुरे विचारों के साथ व्यक्ति के उत्थान-पतन का घनिष्ठ सम्बन्ध है। कोई भी विचार-धारा तभी सफल होती है जव कि उसके साथ हमारी हत्तन्नी जुड़ जाये-~~-जो फिर अलग नहीं हो सके । यदि विचार-वारा स्थिर नहीं है, कभी किसी प्रकार के विचार हैं और कभी किसी
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