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________________ धर्मादा की सपत्ति २६१ के भी थप्पड या लकडी मारी, तो दोनो प्रहारो भै अन्तर है, या नहीं ? अन्तर अवश्य है। इसी प्रकार विमी को लाठी से मारते हुए भी यह विचार है कि कही इस ममस्थान पर नहीं लग जाय, या इमकी हड्डी नही टट जाय, इम विचार से केवल सामने वाले को रोकने के भाव से मारता है और दूसग शत्र के मर्मस्थान पर मारता है-इस विचार से ही--- कि एक ही प्रहार में इसका काम तमाम पर हूँ, तो उन दोनो के भावो मे अन्तर है या नहीं ? अवश्य है और भावो के अनुमार एक के मन्द कर्मबन्ध होगा और दूसरे के तीन कर्म वन्ध होगा। क्योकि जनशासन मै भावो की प्रधानता है। जहा भावना मे, विचा 1 मे अन्तर है, वहा पर कर्म वन्ध म अन्तर अवश्य होगा। और भी दखो एक साधु भी गमन करता है और दूसरा साधारण व्यक्ति भी गमन करता है । साधु ईर्यासमिति स जीवो को देखता हुआ और उनकी रक्षा करता हुआ चलता है और दूसरा इस जीव-रक्षा का कुछ भी विचार न रख के इधर-उधर देखते हुए चलता है, अब गमन तो दोना कर रहे हैं, परन्तु दोनो वो भावना मे अन्तर है, अत कर्म-बन्ध में भी अवश्य अन्तर होगा । इस विश्य मे मागम कहता है-- उच्चालम्मि पादे इरियासमिदस्स अप्पमत्तस्स । आवादेज्ज कुलिंगो मरेज्ज तज्जोगमासेज्ज । ण हि तस्स तणिमित्तो बधो सुहमोवि देसिदो समये ।। अर्थात्-ईयर्यासमिति पूर्वक गमन करनेवाल अप्रमत्त माधु के पैर के नीचे सावधानी रखने पर भी यदि अचानक कोई जीव यावर मर जाय, तो उसे निमित्तक- हिंसा-पापजनित सूक्ष्म भी कम वन्ध नहीं होता। ___इसके विपरीत अयत्नाचार से गमन करनेवाले रो जीव चाहे मरे, अथवा नही मर, किन्तु उसको नियम मे हिंमा का पाप वन्ध होगा। जमा कि कहा है--- मरठ व जियदु व जीवो अयदाचारस्सणिच्छिदा हिंसा । पयदस गत्यि वधो हिंसामेण समिदस्त ।। अर्थात - जीव चाहे मरे, अथवा चाहे नहीं मरे, किन्तु चलने में जा यतनासावधानी-नहीं रखता है, अयत्नादारी है-उसका हिंसा का पाप निश्चिन रूप में लगता है। किन्तु जो चलते समय प्रयत्नशील है--सावधानी रखता है, उसमे हिमा हो जाने पर भी वन्ध नहीं होता है। आगम के इन प्रमाणो के निर्देश का अभिप्राय यह है जिनमत्त योग से होने वाली हिगा में और अप्रमत्तयोग से होने बानी हिंसा म आवाण-पातान
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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