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विज्ञान की चुनौती
२३१ इसीप्रकार आपको भी आत्मिक उन्नति के लिए और धर्म के प्रसार के लिए त्याग करना पड़ेगा, ये भोग-विलास और ऐशो-आराम के साज-बाज छोडने होंगे और दिन-रात आगमों की छानबीन करके जगत के कल्याणकारी तत्त्वों को संसार के सामने रखना होगा और बताना होगा कि आपके सच्चे सुख के साधन ये ही तत्त्व है, तव आप देखेंगे कि तत्त्व-जिज्ञासु, धर्म-पिपासु और सुखाभिलाषी लोग आपकी ओर किस प्रकार बढ़ते हुए आरहे हैं आप आजके विज्ञान की चुनौती का अच्छी रीति से उत्तर दे रहे है । एक ओर जहां आपको ये उत्कृष्ट साधन स्वीकार करने होंगे, वही पर आपको निम्न सात व्यसनों का त्याग भी करना होगा
धू तं च मांसं च सुरा च वेश्या, पापद्धि चोरी परदार-सेवा ।
एतानि सप्त व्यसतानि लोके, घोरातिघोरं नरकं नयन्ति । जुआ खेलना, सट्टा करना, फीचर लगाना ये धनोपार्जन के कारण नहीं है प्रत्युत विनाश के कारण हैं । मांसाहार मनुष्यों की खुराक नहीं, अपितु हिंसक जानवरों की खुराक है । इसके खाने से मनुष्य ऋरवृत्ति बन जाता है और हिंसा का महापाप लगता है। मदिरा बुद्धि का विनाश करती है और वेश्या सेवन तन मन और धन का क्षय करती है। शिकार खेलना महाहिमा और हत्या का कारण है । चोरी करना दूसरे के प्राणों का अपहरण करना है । परस्त्रीगमन करना महा अपयश का कारण है । ये एक-एक व्यसन इस भव में भी दुखदायी है और परभव में नरक-निगोद में ले जाने वाले हैं। सिगरेट पीना, भंग छानना और आज के नाना प्रकार के दुर्व्यसन मदिरा पान के ही अन्तर्गत हैं नाटक सिनेमा भी अधःपतन का आज प्रधान कारण है । एक सितेमाघर में एक व्यक्ति ने जलती हुई सिगरेट डाल दी। जिससे आग भड़क उठी और १४२ व्यक्ति जलकर मर गये। जब तक आप लोग इन सव दर्व्यसनों का त्याग नहीं करेगे तब तक आपका उत्थान नहीं हो सकता है और जो स्वयं गड्ढे में गिर रहा है, वह दूसरों को गिरने से कैसे बचा सकता है ? जो व्यसनों के अधीन हैं, वे मुर्दार हैं और जो उनसे स्वतंत्र है, वे सरदार हैं । अतः जीवन को शुद्ध और सच्चरित्र वनाने की आवश्यकता है जीवन में आध्यात्मिक चिंतन आत्म-अनुसंधान और तत्व विचार करके भौतिकता को आध्यात्मिकता से जीतने की आवश्यकता है, तभी आप आज के विज्ञान की चुनौती का उत्तर दे सकेंगे। वि० सं० २०२७ कार्तिक सुदि ४
जोधपुर