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________________ ज्ञान की भक्ति बन्धुओ, आज ज्ञान पंचमी है । ज्ञान की भक्ति हमे कैसी करनी चाहिए और ज्ञान की आराधना कैसे करना चाहिए और क्यो करना चाहिए ? ये सत्र वाते हमारे लिए जातव्य है, इसलिए आज इस विषय पर प्रकाश डाला जाता है ! संसार में सर्व वस्तुओ मे और आत्मा के सर्व गुणो मे ज्ञान ही सबसे उत्कृष्ट और पवित्र है । कहा भी है-- न हि ज्ञानेनं सदृशं पवित्रमिह विद्यते । इस मंसार में ज्ञान के सदृश और कोई वस्तु पवित्र नहीं है 1 सन्त पुरुपो ने भी कहा है झान समान न आन जगत में सुख को कारन । यह परमामत जन्म जरा मति रोग-नशावन ॥ तातें जिनवर-कथित तत्व अभ्यास करीजे, संशय विनम मोह त्याग आपो लखि लीजे ॥ भाइयो, ज्ञान के समान इस संसार में सुख का कारण और कोई पदार्थ नहीं है। यह ज्ञान जन्म, जरा और मरण इन तीन महारोगो का नाश करने के लिए परम अमृत के समान है। इसलिए जिनेन्द्र देव-प्ररूपित तत्त्वो का अभ्यास करना चाहिए और अपने अनादि काल से लगे हुए सशय विभ्रम २३२
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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