________________
२३०
प्रवचन-सुधा सकेगा, अन्यथा नहीं । पहिले यदि कोई सन्त कोई एक 'सज्जाय' सुना देते और उसका अर्थ कर देते थे तो लोग उन्हें बहुत बड़ा विद्वान् मानते थे । जवकि आज यदि कोई वैसी सज्झाय सुनावे और अर्थ करे तो आप ही कहेंगे कि यह तो हम ही जानते हैं ।
आज का जमाना नवीनता की ओर जा रहा है अतः युगानुरूप हमें भी नवीनता लानी पड़ेगी । यह नवीनता कहीं वाहिर से नहीं लाना है। किन्तु हमें अपने दिमाग से ही प्रकट करना है । आगमों और शास्त्रों में आज के लिए उपयोगी पड़ें ऐसे तत्त्व इधर-उधर बिखरे पड़े हुए हैं, उन्हें एकत्रित करने से और आज की मांग के अनुसार उपस्थित करने से ही उनका प्रकाश होगा और तभी हम आप और दूसरे व्यक्ति उनसे लाभ उठा सकेंगे।
भाइयो, आप लोग व्यापारी हैं और अपने-अपने व्यापार की कला में कुशल है । कपड़े का व्यापारी जानता है कि आज किस जाति के कपड़े की मांग है और वह कहां-कहां से आता है, इस बात का पता-ठिकाना याद रखता है । तथा वहाँ-वहां से लाकर अपनी दुकान को सजा करके रखता है, तभी उसकी दुकान चलती है और वह लाभ प्राप्त करता है । जहां जिस कपड़े की माग नहीं हो और वह उसे लाकर के दुकान में रखे तो न बह विकेगा ही और न लाभ ही वह प्राप्त कर सकेगा । आपके यहां चोसे का कलाकन्द बनाते है और आठ रुपये किलो बिक जाता है । किन्तु यदि वही किसी गांव मे ले जाकर के वेचे तो उसे कौन खरीदेगा ? जहां पर जिस समय जिस वस्तु की मांग होती है, वहां पर और उस समय वही वस्तु विकती है । आपके यहां अन्न की मांग है। यदि दो सौ गाड़ी भी अन्त की आजावें तो तुरन्त बिक जावेगी । और यदि ऊनकी दो सौ गाड़ी आजावें तो नहीं विकेगी, क्योंकि यहां ऊन की मंडी या कारखाने नहीं है । जैसे कि समय की स्थिति देखकर आप लोग व्यापार करते हैं, उसीप्रकार आत्मा का भी व्यापार है । आत्मा जिस वस्तु को चाहती है और जिससे आत्मा का उत्थान हो सकता है, आज उसके अनुरूप ही हमें ज्ञान-प्राप्ति के साधन जुटाने की आवश्यकता है।
उन्नति कैसे हुई ? वर्तमान में जो भौतिक विज्ञान की इतनी उन्नति हो रही है, वह अपने आप सहज में नहीं हो रही है। उसके पीछे सैकड़ों व्यक्तियों की दीर्घकालोन साधना है। वे लोग अपना भोग-विलास छोड़कर, खाने-पीने की भी चिन्ता नहीं करके रात-दिन नित्य नयी शोध-खोज में संलग्न रह रहे हैं, तभी इतनी उन्नति कर गये हैं और कर रहे है । विना त्याग के कुछ भी नहीं हो सकता ।