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विज्ञान की चुनौती
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दु.ख हो गया और जवानी में मर गया तो सौ गुना दुःख हो गया । यदि जीवित भी रहा और कपूत निकल गया तो रात दिन चौबीसों घंटों का दुःख हो गया। आज के कपूत कमाई के स्थान पर गमाई करते और बाप के मना करने पर उसके ऊपर अदालत में दावा करते है कि मेरे बाप का दिमाग खराब हो गया है, उन्हें जायदाद बेचने का कोई अधिकार नहीं है ! जहाँ पहिले आसामियों और साहूकारों के यहां धान्य के कोठे भरे रहते थे, वहां आज विदेशों के अन्न पर भारत जीवित रह रहा है। पशुओं के लिए जहां लाखों बीघा गोचरभूमि रहती थी, वहा आज खड़े होने को भी नहीं है औरा चारापानी के लिए पशु तरस रहे हैं और वे मौत मर रहे है। पहिले के रूप-रंग को देखो संकड़ों वर्षों की चित्रकारी ऐसी दिखाई देती है कि मानो आज ही की गई हो । ज्यों का त्यों रंग-रोगन बना हुआ है और आज ग के सूखते ही वह उड़ जाता है । यही बात रस, गन्ध की भी है । सभी फल-फूलों में उत्तरोत्तर उनका ह्रास हो रहा है। पानी की वर्षा तो उत्तरोत्तर घट ही रही है । आज वर्मा का यह हाल है कि पानी बरसने पर बल का एक सीग भीजता है और एक नहीं भींजता है । शहर के एक भाग में पानी बरस जाता है और दूसरा सूखा पड़ा रहता है। इस प्रकार आयु-कायादि दसों ही वस्तुए दिन प्रति दिन घटती चली जा रही है । इस हानि को हम नहीं रोक सकते है, क्योंकि आरे का स्वभाव ही घटने का है। ज्ञान की भी उत्तरोत्तर कमी होती जा रही है । भले ही भौतिक ज्ञान की वृद्धि हो रही हो, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान की तो हानि ही होती जा रही है।
पहिले हर जैन बालक को उनके दैनिक प्रतिक्रमण आदि के पाठ कण्ठस्थ रहते थे । किन्तु आज भौतिक पढ़ाई की पुस्तकों का भार उन वेचारों पर इतना अधिक है कि वही उनसे नहीं उठता, और उसे रटने से ही उन्हें अवकाश नही मिलता है तो वे कहां से धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए समय निकालेंगे। आज की इस प्रचलित पढ़ाई को आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है । इसका इतना अधिक अनावश्यक भार बालकों पर है कि उनके शरीर पर्याप्त पोपक पदार्थों के अभाव में पहिले ही सूखकर कांटा हो रहा है और दिन-रात पढ़ते रहने से छोटी ही अवस्था में चश्मे लगाने पड़ रहे है । ऐसी अवस्था में आज इस बात की आवश्यकता है कि धार्मिक ज्ञान के लिए समय के अनुसार ऐसी पुस्तकों का निर्माण कराइये कि जिनके द्वारा वे धार्मिक तत्त्वों को आसानी से हृदयंगम कर सकें और स्मरण रख सकें। भाई, आज समय की पुकार है कि युग के अनुरूप वैज्ञानिक ढंग से आप ज्ञान के साथ सम्पर्क स्थापित कीजिए. तभी आपका यह धर्म टिक सकेगा और आगे बढ़