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________________ २२८ प्रवचन सुधा की दिवालों में और फर्शो पर जड़े जाते थे, आज वे आभूषणों में भी जड़ने के लिए दुर्लभ हो रहे हैं। लोग कहते हैं कि घन पहिले मे आज अधिक बढ़ गया है । पर में पूछता हूं कि क्या बढ़ गया है ? ये कागज के नोट बट गये हैं ? अन्यथा पहिले के समय में धनाढ्य लोगों के पास करोड़ों की संख्या में सुवर्ण दीनार होते थे और सैंकड़ों करोड़पति एक-एक प्रान्त में थे, वे आज कहां हैं ? आज सारे राजस्थान में दस-पांच करोडपति मिलेंगे, जब कि पहिले सैकड़ों थे । आपके इसी मेड़ता नगर में वि० सं० १७८१-०२ में जब ठाणापति पूज्यधनाजी महाराज विराजे थे, तब वहां बावन करोड़पति पालकी में बैठ कर उनके व्याख्यान को सुनने जाया करते थे। आज भी उनको साक्षी मिलती है कि मेड़ता के हो लखपतियों और करोड़पतियों से अजमेर आवाद हुआ और लाखन कोटड़ी वसी । इसी पाली में पहिली सोने-चांदी से बनी हुई दुकानें सुनते हैं और लाखों घरो की वस्ती थी तो अब कहाँ है ? वस्ती जड़ बहुत नहीं घन वाला, जो किसी के हुआ घन्न नहीं रखवाला, जन में तों जीवे नहीं, सोग मन लावे, जीवे तो विरले कपूत माया जड़ावे | कर पिता से झोर, माया तब म्हारी, सुनो इस आरे का हाल, करो होशियारी, किसी के लेने का दुःख, किसे लेने का, किसे रहने का दुःख किसे गहने का । किसे भाई का दुःख, किसे माई का, किसे पुत्र का दुःख, किसे जमाई का, दुपमा पंचमकाल सुनो नर-नारी ॥ पहले और आज लोग कहते हैं कि आवादी बढ़ गई ? कैसे बढ़ गई ? बाज आपके जोधपुर में तीन हजार से ऊपर ओसवालों की संख्या आंकी जाती हैं । परन्तु जोधपुर के आस-पास का यह सारा इलाका आपकी जाति से खाली हो गया है। जहां पहिले आपके सौ दो सौ घर थे, वहां पर अब दो-चार घर भी नहीं रहे हैं । आज गांव वीरान हो रहे हैं और नगर मावाद हो रहे हैं तो यह आबादी घटी, या बढ़ी ? आप लोग शहरों की ओर नजर डालते हैं. पर गांवों की ओर कहां देखते हैं ? इसी प्रकार आज धान्य को भी दिन प्रतिदिन कमी होती जा रही है । जहां पहिले एक रुपये में इतना अन्न आता था कि पूरे महीने भर एक आदमी खाता था, यहां आज एक रुपये में एक दिन का भी गुजारा नहीं होता है । फिर यदि किन्हीं इने-गिने लोगों के पास कुछ धन-धान्य हो भी गया तो वह सन्तान के विना रोता है कि मेरे धन को भोगनेवाला और खानेवाला कोई नहीं है । यदि वैवयोग मे हो भी गया और वालपन में मर गया तो और दूना
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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