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देव तू ही, महादेव तू हो
गुरु की महिमा
भाई, गुरु का माहात्म्य भी तभी तक है, जब तक कि वह निर्लोभी है, विषय-कपाय से दूर है । और जहां उसमें किसी भी दोष का संचार हुआ कि उसका सारा माहात्म्य समाप्त हो जाता है । जज की न्यायाधीश की प्रतिष्ठा तब तक ही है, जब तक कि वह निर्लोभवृत्ति से अपना निर्णय देता है । और जहां उसमें लोभ ने प्रवेश किया, और रिश्वत लेना प्रारम्भ किया, वहीं उसकी सारी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है । लोभ आने के पश्चात् ज्योतिषी का ज्ञान, मंत्रवादी का मंत्र प्रयोग, चिकित्सक की चिकित्सा और पंचों की पंचायत भी समाप्त होते देर नहीं लगती है ।
किन्तु जिस व्यक्ति में स्वाभिमान है, वह अपने पद का विचार करता है अतः वह ऐसा कोई भी काम नहीं करता है, जिससे कि उसके पदकी प्रतिष्ठा में आवात पहुँचे । स्वाभिमानी या मनस्वी व्यक्ति के पास धन, परिवार, वल, बुद्धि आदि सब कुछ होते हुए भी वह विचारता है कि यह सब मेरा कुछ भी नहीं है । ये सब तो पुण्यवानी से प्राप्त वस्तुएँ है । जिस समय पुण्यवानी समाप्त हो जायगी उसी समय इन सव के भी समाप्त होने में देर नहीं लगेगी । मेरा ज्ञानानन्दमयी स्वभाव सदा मेरे पास है । फिर मैं उसका स्वाभिमान न करके उन पर वस्तुओं का अभिमान क्यों करू जो कि क्षणभंगुर है । इस प्रकार वह ससार की किसी भी वस्तु का अहंकार नहीं करता है ।
भाइयो, एक सूर्य का उदय होने पर सारे संसार के अन्धकार का नाश हो जाता है । दुनिया के जितने भी कार्य है, वे सब सूर्य के पीछे ही हैं । सूर्य के उदय होने पर ही किसान किसानी को, व्यापारी व्यापार को, मजदूर मजदूरी को और दानी दान को भलीभांति सम्पन्न करता है । यह अन्धकार भी एक प्रकार का नहीं है, किन्तु अनेक प्रकार का है । आलस्य और प्रमाद भी सूर्य से दूर होता है । पूर्व समय में लोग जन्म-मरण और परण (विवाह) जादि मे सूर्य, चन्द्र की साक्षी देते थे । दान भी दिन में ही दिया जाता था, विवाह भी दिन में ही होते थे और मन सम्मान के होते थे । परन्तु आज तो किसी भी बात की मर्यादा सभी दुर्गुण एक कुमति के पीछे चलते है और सभी पीछे चलते हैं । सद्गुरु को शिक्षा के प्राप्त होते हो सभी गुण स्वयमेव प्राप्त होने लगते हैं । किन्तु गुरु भक्ति के बिना कुछ भी नही है । सदाचार या चारित्र का प्रसार गुरु भक्ति के होने पर ही होता है । अतः कहा गया है कि
समारोह भी दिन में हो
नहीं रही है । संसार में
सद्गुण एक सुमति के