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________________ १६८ उत्तराध्ययन जीव अनुद्धत फिर मदु मार्दव से होकर सपन्न महा। । ___ मद के पाठो स्थानो का कर देता शीघ्र विनाग यहाँ ।।१०।। भाव-सत्य" से क्या फल मिलता भगवन् ! प्राणी को अनवद्य ? भाव-सत्य से भावो की सशुद्धि प्राप्त करता है सद्य ॥११०॥ भाव-शुद्धि-रत जीव जिनोक्त धर्म के आराधन मे तत्पर होकर वह परलोक धर्म का आराधक बनता है सत्वर ।।।१११॥' करण-सत्य' का क्या फल? इससे करण-शक्ति को वह पाता है। करण-शक्ति वाला जैसा कहता है वैसा ही करता है ॥११२।। योग-सत्य से क्या फल प्राणी को मिलता भगवन् । सुविशिष्ट ? योग-सत्य से योगो की परिशुद्धि प्राप्त करता उत्कृष्ट ॥११३।। मनोमाप्ति का क्या फल ? इससे पाता एकाग्रता यहाँ पर । मनोगुप्त एकाग्रचित्त सयम का आराधक होता फिर ॥११४॥ वचन गुप्ति से क्या फल मिलता ? इससे निर्विकार नर होता। वचन-गुप्त अविकारी वह आध्यात्म योग साधनयुत होता ॥११॥ काय गुप्ति से क्या मिलता? इससे सवर को अपनाता । __ सवर द्वारा काय-गुप्त फिर पापाश्रव रुन्धन कर पाता ।।११६॥ मन की समाधारणा से प्राणी को क्या फल मिलता ? देव ! मन की समाधारणा से एकाग्रचित्त बनता स्वयमेव ।।११७॥ तदनन्तर वह ज्ञान-पर्यवो को होता सम्प्राप्त यहाँ पर । करता दर्शन-शुद्धि तथा मिथ्यात्व क्षीण करता है सत्वर ।।११८।। जीव वचन की समाधारणा से क्या प्राप्त यहा करता ? ___ वाणी-विपयभूत पर्यव-गण को विशुद्ध इससे करता ।।११।। ततः वोधि की सद्य सुलभता मनुज प्राप्त कर लेता है। और वोधि की दुर्लभता को शीघ्र क्षीण कर लेता है ।।१२०॥ तन की समाधारणा से प्राणी किस फल को पाता है ? इससे वह चारित्र पर्यवो मे विशुद्धता लाता है ॥१२१॥ फिर वह क्रमश. यथाख्यात-चारित्र-विशोधन करता सत्वर । । तत केवली-सत्क चार कर्मों को क्षय कर देता मुनिवर ॥१२२।।
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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