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________________ १७ अ० १२ : हरिकेशबल मृषा अदत्त छोडकर षटकायिक जीवो का वध तज शान्त । परिग्रह, स्त्री, दर्प व माया छोड विचरते दान्त नितान्त ॥४१॥ पांच सवरो से संवृत्त शुचि फिर जीवन काक्षा परिहरता। ___ त्यक्त-देह, व्युत्सृष्ट-काय, वर यज्ञ महाविजयी वह करता ॥४२॥ अग्नि कौन-सी, स्थान व कडछी कंडा ईंधन यहा कौन-सा? . किस सु-हवन से शिखि-हुत करते शान्तिपाठ फिर भिक्षु कौन-सा ॥४३॥ तप शिखि, जीव स्थान, शुभ योग कडछियाँ, तन कडे, कर्मेधन । ___ सयम शान्तिपाठ मे करता ऋषिप्रशस्त यह होम शुद्ध मन ॥४४॥ नद कौन-सा व शान्तितीर्थ फिर, अघरज धोते कहाँ स्नान कर । , तुझसे हम जानना चाहते कहो यक्ष-पूजित सयतवर ॥४५॥ अकलुष-आत्म-प्रसन्न भाव, धर्म-द्रह शान्तितीर्थ ब्रह्मवत। .. जहाँ स्नान कर शुद्ध विमल शीतल हो, मैं अघ हरता संतत ।।४६॥ कुशल-दृष्ट यह महा-स्नान है, ऋषियो के हित यह प्रशस्ततर। . विमल शुद्ध उत्तम स्थल प्राप्त हुए महर्षिगण इसमे न्हाकर ।।४७॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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