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सणतुकुमारचरिउ [६७४]
न उण कहमवि निविड-नेहेण परिमुक्किय विण्हुस्सिरि अह कयावि हय-विहि-निओइण । निव-दइयहि सेसियहि अमरिसेण ओसह-पओइण ॥ सज्जण-गरहिय-विहिण परिउज्झिय-भोगुवभोय । सा पत्तिय पंचत्तु लहु विहलिय-इह-पर-लोय ।।
[६७५]
अह नराहियु तीए विरहेण परिसुन्नउं तिहुयणु वि मन्नमाणु तक्खणि वि मुच्छिउ ।
तयवत्थ-विण्हुस्सिरिहि उवरि पडिउ परिमउलियच्छिउ ॥ . अह हाहाविरु मंति-यणु विलविरु नयर-पहाणु । कुणइ चिगिच्छ नराहिवह पसरिय-सोय-निहाणु ।।
[६७६]
निवु वि किंचि वि पत्त-चेयन्नु उक्लद्ध-बहुयर-असुहु . फुरिय-गरुय-वियलत्त-वइयरु । खणु उहइ खणु सुयइ खणु हसेइ खणु रुयइ दुहयरु ॥ दइयए पुणु अ-कुणंतियए न कुणइ भोयणु किंपि । न वि य विमुंचइ पिययमहि तसु संनिहि ईसिं पि ॥
[६७७] . . .
न वि य छिविउ वि देइ इयरस्सु ता सचिविहिं मंतिउण कह वि दिहि चिवि नरिंदह । उप्पाडिवि विण्डसिरि खिविय नेउ मज्झम्मि विविणह ॥ ता अ-नियंतउ निय-दइय भोयणु जलु वि न लेइ । अंसु-जलाविल-नयणु निवु विक्कमजसु विलवेइ ॥ .६७१ ४. क. दइयहि. ८. क. एत्तिय, .. .