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६४५ ]
[६४२ ]
अह कुमारहं सुकय-सयलम्भ
सणतुकुमारचरि
हिय-इच्छिय- अत्य-कर झालि कामणिि तेण वि साहिय अइरिण वि विज्ज स पयडंतिण नियय
सासाउल खुहिय-मण पणमंत य आयरिण
[६४३]
एत्थ अंतरि पहिण गयणस्सु
पढिय सिद्ध गुरु-कमुवणामिय । दिण्ण विज्ञ पण्णत्ति-नामिय ॥ उवएसिय-विहि-पुच्बु | मणि उच्छाहु अउव्वु ||
desee गिरिवर नाहिं खयराहिविहिं पेसिय अम्हि नियंगरुह चंदसेण-हरिचंद इय
खयर - कुमर दो तत्थ आगय । कुमर-वरह तसु पाय-पंकय ॥
तंयणु कुमारिण भणिउ - किं एहु इय चिंतंतेण । नणु के कत्तु व कह व तुमि
इह आगय वेगेण ॥
[६४४]
अह पयंपहिं खयर – नर- रयण
वियि - सिरिहि गंधव्व-नयरिहि । चंड वेग - सिरिभाणुवे गिहिं ॥ एहु रह-रयणु गहेउ । नाम तुम्हं हेउ ||
[६४५] सुणिय-निहणिय-तणय- वृत्तंतु
खयर-वणि संछन्न- नह- यलु | पत्त- कित्ति जिय-पिसुण-मंडल ||
रोसारुण - नयण दल नाणाविह- समर-धर
असणिवेग - अभिहाणु खयराहिबु गरुय मरहट्टु | आगच्छंतु सुणेवि कय- नहयर-मण-संघट्टु |
६४२. ३. क. सिद्धु गुरुकमुणामिय. ६४४. ५. क. भाणुविगिहिं.
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