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नेमिनाहचरिउ ।
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अह सु मित्तिण भणिउ - नणु नाह तहि चेवुज्जाण-वणि चलह कह-वि विहि वसिण जइ पुणु । सा पत्तिय हवइ निय- ख्व-विजिय-जय-तरुणि वर-तणु॥ ता पच्चूसि समुहिउण मित्त-मेत्त-परिवारु । . तरुणी-यण-दसण-तिसिउ गउ उज्जाणि कुमारु ।
[५०३]
तयणु - मयणह भवणु एह तं जि सा चेव एह रयण-धर सु जि असोउ एहु महु सहोयरु । मलयाणिल एहु सु जि आसि सविहि ससि-मुहिहि सुंदरु ।। संपइ पुणु तसु वालियह दुसहइ हुयइ विओइ । पलयाणिल वि विसेसवइ बंधव जोइ-न जोइ ।। .
[५०४]
इय विसप्पिर-दीह-नीसासु परिविलसिर-विरह-दुहु कुमरु करुणु विलवंतु मित्तिण ।। निय-अंग-परिप्फुरण- कहिय-कज्ज-सिद्धिण पसंतिण ॥ भणिउ -- विसूरसि नाह किह तुहुँ पागय-पुरिसु व्य । जसु कज्जिण हउँ उज्जमहुँ सयल-रयणि-दिवसु व्य ॥
[५०५]
ता पयच्छसु मज्झ आएसु पायालह महि-यलह नह-यलह व लीलई गहेविणु । निय-नायग-गाढ-गुण- गहिय-हियय अग्गइ करेविण ॥ सा लहु निय-पहु मण-रयण- तक्करि उवदंसेमि । अन्नह मज्झि वसुंधरह निय-नामु चि न वहेमि ॥ ५०३. ३ क. यसोउ. ५०५. ८. क. वसुंधरहं,