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सणतुकुमारचरित
अह नराहिव-वयणु निसुणेवि संतोसामय-वरिस- सित्त-गत्त-लइय व्य असरिम् । उवदंसिर-पुलय-भरु भणइ साणुणउ देवि स-हरिसु ॥ हवउ हचउ मह देव-गुरु- चलण-पसाइण एहु । जह जायहुं इह-पर-भवि वि हउं वि सयल-सुह-गेहु ॥
[४६७] - तयणु नंदण-वयण-रयर्णिदउवदंसण-सुह-तिसिय देवि देइ देवयहं विविहहं । उवयाइय-सय-सहस कुणइ पूय जिण-पाय-पउमहं ॥ आराहइ गुरुयण-चलण ओसह-सयई पिएइ । निय-गमह निविग्ध-कए बहु-रक्खाउ करेइ ॥
[४६८] . तयणु स-हरिसु धरणि-हरिणंकसंपूरिय-दोहलय . गमइ कमिण. पडिपुन्न-वासर । अह सयल-गुणभहिइं दियहिं पत्त-गय-दोस-अवसर ॥ पसवइ देवि समग्ग-गुण- लक्षण-रयण-निहाणु । भुवणाणंदणु सुय-रयणु पयडिय-विहि-विण्णाणु ॥
[४६९] अह पढ़तिहिं भट्ट-चट्टेहिं गायंतिहिं गायणिहिं . दिज्जमाणि दाणम्मि वंदिहिं । कितिहिं मंगलिहिं. वज्जिरेहिं बहु-तूर-विदिहिं ॥ सधराधर-धरणियल-जण- परम-सुहाण निहाणु । दिण्णु नरिंदिण नंदणह सणतुकुमारभिहाणु ॥ - ४६८, ४. क. ख. गभहिंइ. ८. क. भवणा'.