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नामसाधित तुंगिम, थिरिम, गंभीरिम (विशेषण परथी भाववाचक नाम),
वंदियण, पुलिंदयण, तरुणीयण, सहियण ('यण' बहुवचनना प्रत्ययर्नु काम करे छे).
अंगविस्तारक (लघुता, कोमळता वगेरे पण व्यक्त करता) प्रत्यय : स्वार्थिक 'य' (स्त्री. 'इय')नो घणो वपराश छे.. 'गोरडी' 'वत्तडी'मां 'डिय' प्रत्यय छे.. 'नयणुल' मां 'उल' प्रत्यय छे. 'हियडुल्लउं', 'हियडुलउं' एमां 'ड' तथा 'उल्लय' ('उलय') प्रत्यय छे..
पढ़मेल्लुय'मां 'एल्ल' तथा 'उय' प्रत्यय छे... केटलाक प्रयोगो
अधिकरणविभक्ति वाळो ('सतिसप्तमी'), करणविभक्ति वाळो के संबंधविभक्ति वाळो मुक्त वाक्यखंड :
छंद ४६९मां तथा ७४२ थी ७४५मां मुख्य क्रियानो प्रवर्तनकाळ दर्शाववा आवती सहयोगी क्रिया अधिकरण तेम ज करणविभक्ति : लेती' होवानां
उदाहरण छे : 'गायतिहिं गायणिहिं' वगैरे. ..... एवों ज अर्थ दर्शाववा संबंधविभक्तिना प्रयोगर्नु उदाहरण 'तहं ललं
तह (४७७) छे. आ ज रचना पछीथी गुजराती वगेरेमा रूढ थाय छे. (जेम के . 'तेमना देखता', 'दोडतां दोडता' वगैरे). ..." नीचेनी रचनाओमां संबंधविभक्तिनो प्रयोग नोंधपात्र छ :
'पाउसह सरइ' (४४७), 'विसारयह कहई' (४६२), 'तिहुयणहं साहति' (४७८), 'पलयह नीउ', 'तुह दंसहुँ'. ....... गति अर्थना क्रियापदो अधिकरणविभक्ति ले छे :
'उज्जाणि गउ', 'नियघरि गच्छंति'. संयुक्त क्रियापदना नीचेना वे प्रयोगो नोंघवा जोईए : 'छडिवि जंति' (७८१); 'नीहरिउ लग्गउ' (५७९). .
'जोइ-न जोइ' ५०३) जेवा आज्ञार्थ रूपमा वपरायेलो अनुरोधवाचक 'न' पछीथी हिन्दीमां रूढ बन्यो छे,
'मह होंतु' (४९१) ए प्रयोगमा 'होतु' भूतकाळनो अर्थ धरावतो होईने . ते अर्वाचीन गुजराती 'हतो' नुं एक पूर्वरूप रजू करे छे. .