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कर्ता-कर्म-विभक्ति एकवचन .. • • अकारांत पुं. अने नपुं. अंगोमां अंत्य अकारनुं स्थान उकार ले छः
'लोगु', 'निवु', 'सुंदरु', 'पवित्तु', 'सूरु', 'सामिउ', दाणु', 'वयणु', 'रयणु'. : अकारांत नपुं. अंग जो 'म'('य') प्रत्ययथी विस्तारित होय तो 'अ'ने स्थाने 'उ' आवे छे :
.. 'सिविणउं', 'पारणउं', 'जायउं', 'परिसुन्नउं', 'हियडुलउं'. .. . {_ अकारांत स्त्री. अंगो अने इतर-स्वरांत अंगो कशो प्रत्यय लेता नथी.
'वसुह', 'पिय', 'पह', 'कह', 'पंतिय'; 'निवई', 'सिहंडि', 'पई', 'निहि', 'सिरि', "तरुणि', 'कित्ति', 'रइ', चुंटती', 'इंदु', 'वरतणु', 'तारा'.
। प्राकृत रूपोमां (खास. करीने 'वि'नी पूर्वे) अकारांत पुं. नुं रूप ओकारांत होय छेः 'पिओ', 'अंगो', मकरांत पुं, अने न. अंग प्रत्यय विना क्वचित ज वपरायुं छेः 'निवार' (४७७), 'एस' (४८६), 'सविह' (४५९) (क्रियाविशेषण तरीके).
कर्ता-कर्म-विभक्ति बहुवचन ... :::: . पुं. अंगो कोई प्रत्यय लेता नथी..
'विउस', 'नर', 'मणहर'. प्राकृत रूपो आकारांत छे : 'होरा', 'किरणा'. नपुं. अंगो 'ई' प्रत्यय ले छे, अथवा तो कशो प्रत्ययं लेता नथी:
'कुट्टई', 'सयई', 'पयई', 'सिविणइ', 'पवरई', 'चलण', 'कुसुम', 'सिविण', 'चरिय', 'हियय', 'भणिय', 'निलीण'. प्राकृत रूपोमां आई' प्रत्यय छेः 'कुसुमाई', 'सव्वाई'. * अकारथी विस्तारित अंगोमा ए अकारनी साथे जोडाईने 'आई' प्रत्यय बने छे:
'दिवाई', 'कहियाई', 'हियडुल्लाइ', 'कायब्वाइ'. :: स्त्रीलिंग अंगो उ.प्रत्यय ले छे..
.:. 'वत्तउ', 'वहुयउ', 'कन्नयउ', 'सयसंखउ', 'काउ', 'ईमाउ', 'रक्खाउ', 'जणणिउ', 'तरुणिउ', 'नियंबिणिउ', 'मंजरीउ', 'सरणीउ'. .......... . करण-विभक्ति एकवचन .......
- अकारांत पुं.न. अंगो 'इण' प्रत्यय ले छे. प्राकृत एण' पण क्वचित वप- . राय छ :