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सनत्कुमारचरित
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सुखोना निधिरूप, नाम पाड्युं. (४६९). आथी राजाना हृदयमां प्रमोद थयो, देवीनुं मन आनंदित थयुं, पृथ्वी परना सज्जनोने घणो हर्ष थयो, बंदी लोकोने परितोष थयो, विद्वानो तुष्ट थया, दुर्जनो अत्यंत डरी गया. अथवा तो (कहोने के) कुमारना नामनुं श्रवण करीने समग्र धरती, भावी महान उदयथी अत्यंत हर्ष घरवा लागी. (४७० ).
पर्वतनी कंदरामां सिंहकिशोरनी जेम जेनी गतिने कोई अवरोध नथी तेवो कुमार क्रमे क्रमे कीर्ति प्राप्त करतो, मित्रो अने स्वजनोने आनंदित करतो, दुर्जनोनां मनभंग करतो, आठ वर्षनो थयो . ते वीरोना हृदयने संतोष आपतो हतो, सुभटोनी वातो सांभळीने उल्लसित थतो हतो, उत्तम पुरुषोनां चरित्र सुणतो हतो अने विद्वानोनी सभामां ठरतो हतो. (४७१).
दिवस अने मुहूर्त जोईनें एटले अति प्रसन्न चित्ते थोडाक ज दिवसोमां समस्त पूनमना चंद्रनी जेम पोतानी
ते पछी राजाए मोटा उत्सव साथे मांगलिक आनंदपूर्वक ते उत्तम कुमारने उपाध्यायनी पासे मूक्यो. अनेक गुणोना आश्रयरूप एवा कलाचार्ये कुमारने कलासागरनी पार पहोंचाड्यो. (४७२). परिणामे, ज्योत्स्नाना व्यापथी जगतना अंतराळने भरी देनार, निर्मळ कलाओनो निलय, गंभीरतामां सागर, स्थिरतामां धरती, ऊंचाईमां हिमालय एवो कुमार सज्जनोथी सेवातो, बुद्धिमानोथी वखाणातो, आखा जगतमां पोताना गुणोए करीने प्रसिद्ध थयो. (४७३).
वळी तेनी साथे एक ज समये जन्मेलो, साथै ज धूळमां रमेलो, साथे ज जेणे गुणानां रत्नाभूषण प्राप्त कर्या छे तेवो, साधे ज कीर्तिमान बनेलो, साथै ज शत्रुओने परास्त करनारो, समसुखियो अने समदुखियो, समान रूपश्री धरावतो, सथोसाथ ज जुवान थयेलो, समानशील, तेनी जेम ज मित्रो अने सज्जनोने सुखदाता, साथै ज रमतगमतमां भळतो, शूर राजाना चरण सेवतो, कालिंदी देवीनो पुत्र, सज्जनोने सुंदर आनंद आपतो, बाल्यवयमां पण वृद्धसमो, पूर्वजो प्रत्येना. आदरथी शोभतो, परस्त्रीनी कामनाथी रहित, एवो तेनो बालसखा, नाम प्रमाणे ज प्रकट स्वरूप धरावतो, महेन्द्रसिंह नामे हतो. (४७४-७५). ए प्रमाणे अतिशय लावण्यथी विलसता, भरजोबनथी थनगनता, प्रचंड शत्रुनुं खंडन करता, मित्रो ने स्वजनोने संतुष्ट करता, दुर्जनोनो ध्वंस करता, दृढ प्रतिज्ञा वाळा,