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सनत्कुमारचरित गुजराती भाषांतर
मलयाचलनां वनो जेनो केशपाश छे; उत्तुंग मेरुशिखर रूपी उत्तमांग ( = मस्तक ) थी जे पंकायेली छे; चंद्र ने सूर्य जेनां लोचन छे; तारकश्रेणि जेनी श्वेत दंतपंक्ति छे; गिरिराज हिमालय अने विंध्य जेनुं कठिन अने स्थूळ स्तनयुगल छे; कालिंदी नदीनो जलसमूह जेनी रोमावलि छे; स्वर्गंगाना पुलिन जेनां जघन छे; सागर जेनुं अंबर छे
एवीपृथ्वीवधूने मंडित करतो, पोताना मंदराचळ वडे बाकीना बधा द्वीपोंना माहात्म्यना झळहळाटने खंडित करतो, हजारो पहाडो नगरो खाणो गामो नदीओ अने देशोथी समृद्ध एवो महान जंबूद्वीप छे. ए जंबूद्वीपमा प्रसिद्ध भरतंक्षेत्रमां - ज्यां, रात्रे चंद्रोदय थतां घरनी भींत परनां चित्रोमांनी तरुणीओ, जगद्-वल्लभ सूर्यनी अस्त थतो जाणीने भारथी द्रवित थता चित्त वाळी, चंद्रकांत मणिमांथी, स्फुरता जळप्रवाहथी भराई आवेली आंखो वाळी, जाणे के भरपूर दुःख प्रसरवाथी कंठमार्ग भराई आव्यो होय तेम, सूर्यना विरहे रड़ी रही छे;
ज्यां, गिरिराज समा ऊंचा गजराजोना गंडस्थलमांथी गळता मदजळथीभोंय छंटातो होवाने लीधे, अने राजसमूहनां श्वेत छत्ररत्नो वडे (सूर्यना) तीक्ष्ण किरणोनुं निवारण थतुं होवाने लीधे सौ लोको (जेमने मनमानी वस्तु आपवामां दक्ष एवा राजवीभोए संतुष्ट कर्या छे), ग्रीष्मऋतुमां पण वर्षाऋतुने संभारता नथी—
एवा ए भरतक्षेत्रमां, जेम मुक्तारत्न स-गुण ( = दोरा सहित ), कोटना (= गळाना) अलंकारमां रहेलुं, सुनिवेश (सुंदर स्थाने स्थापित ) होवाथी आनंददायक, रत्नाकर(=समुद्र)रूपी असामान्य वंशमां जन्मेलुं, अति पवित्र, पाणीदार, सज्जनना हृदय उपर विराजेलं अने हाथीने पीडाकारक होय छे, तेम तेना जेवुं हस्तिनापुर नगर हतुं, जे गुणवाळु, गढरूपी अलंकारथी युक्त, सुंदर घरोने लीधे आनंददायक, असामान्य अने उत्तम वंशानुं उद्भवस्थान, अतिपवित्र, सारा वेपारीओथी युक्त, सज्जनोनुं मन हरनाएं, उपद्रवरहित भने अमरावतीना जेवा
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