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________________ ७७३] [७७०] इय दुरंतिर्हि जीय-पज्जंत समयावह - दुहयरिहिं हु हु अनि विवाहिहिं । सयलस्सु विभुवण-यल- जणहु जणिय-गुरु-हियय-दाहिहिं || सुरगिरि-चूल व अविचलिर- माणसु सणतुकुमारु । चिss अहिया संतु निरु सुमरंतर नवकारु || [७७१] अह निरिक्खिय सु- मुणि-चरिएण अ - विहिय-माण सिण जह - पेक्खहु सुर - गणहु जो छट्टट्ठ-दुवालसमसोसइ धम्म- सरीरु भव सणतुकुमारचरि aadar - करिह सिक्कारु त्रिमुयइ न य भुवस्सु विसारीरिहिं उप्पन्नाहिं वि ओसंहिहिं [७७२] न उण वाहिहिं विदुर-जय-जंतु - भणिउ सह सोहम्म- इंदिण | चरिउ चक्क पहु-मुणिहि भाविणं ॥ मुहतविण विविण । भावुव्विग्ग-मणेण ॥ · बहु-विहाहिं पीडिज्जमाणु वि । उवयरेइ तणु भण्णमाणु वि ॥ वाहि-विसेस - हराहिं । आमोसहि पमुहाहिं || [७७३] इय भणतह तियसनाहस्सु मणि विहिय सयल सह गुण सुणेइ त निव-सुर्णिदह । आससेण-कुल-गयण- चंदह ॥ भुवणुत्तर- सुचरियह किं पुण तिजि पुव्वुत्त सुर दो-वि अ-सदहमाण | आगय राय - रिसिहि पुरउ वेज्ज-रूबु घरमाण ८३
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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