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'ग्रहण वताप्रातिपदिकेन तदन्त विधिनास्ति'। इस परिभाषा से तदन्त विधि का निषेध होने से 'ठक्' असिद्ध अप्राप्त। हो जाएगा। एतावता 'ठक्' विधान के लिए उक्त वार्तिक का पाठ किया गया है ।
' यद्यपि 'येन विधिस्तदन्तस्य' इस सूत्र में तदन्त विधि विधायक वार्तिक 'धमान्ननः ' का पाठ है तथापि उस की अनपेक्षा करके इप्स वार्तिक का प्रणयन किया गया है ।
नाभि नभञ्च
'उगवादिभ्यो यत्' सूत्र में 'गवा दि गण' के अन्तरगत् 'गण' सूत्र के रूप में यह 'गण' सूत्र के रूप में यह 'गण' सूत्र पठित है । इसका अर्थ है - 'नाभि' शब्द 'प्रकृतिकचतुर्थ्यन्त सुबन्त' से 'हित' अर्थ में 'यत्' प्रत्यय होवे तथा 'नाभि' शब्द को 'न' आदेश होवे । अतः 'नामपे हितं नभ्यः अEl: नभ्यं 35जन' इत्यादि उदाहरण सम्पन्न हुए । रथ की 'नाभि' में ही यह वचन प्रवृत्त होता है क्योंकि 'शरीरावयवाद्यत्' यह सूत्र धारीरावयव भूत नाभि' में बाधक हो जाता है । उस सूत्र से 'नाभ्यमजनं नाभ्यं तेलम्' ।
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।. तदन्तविधेः 'ग्रहणवताप्रातिपदिकेन ' निषेधादचनम् । येन विधिः इत्यत्र - 'धर्मान्त,' इति वार्तिकमनपेोत युक्तम् ।प्रदीप 4/4/41. 2. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तदित प्रत्यय प्रकरणम् , पृष्ठ 959.