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पाण्डरूप बनता है। इसीलिए वृत्तिकार ने 'पाण्डोर्जनपद शब्दात् क्षत्रियाइयण वक्तव्यः' इस प्रकार का वार्तिक स्वरूप निर्दिष्क किया है । इप्स सन्दर्भ में प्रदीप' और उद्योतकार2 का भी अभिमत पूर्ववत् है ।
कम्बोजादिभ्य इति वक्तव्यम्
'कम्बोजालुक्" इस सूत्र की व्याख्या में भाष्यकार ने 'कम्बोजा दिभ्योलुगवचनं चोडाद्यर्थम्' वार्तिक का उल्लेख किया है । इस वार्तिक का पाठ इस लिए किया गया है कि 'कम्बोज' प्राब्द से 'तद्राज' प्रत्यय का लोप तो हो जाएगा परन्तु 'चोडादि' शब्दों के साथ प्रत्यय होने पर 'तद्राज' संज्ञा न होने से लोप नहीं होगा। उक्त सूत्र का उल्लेखा करके प्रकृत वार्तिक का निर्देश किया गया है । अतः चोडः, चोल:, शकः इत्यादि स्थलों में 'दय मगधाकलिङ्गसूरमसादण्" इस सूत्र से विहित 'द्वयज्' लक्षण अण्' का लोप होता है । केरल: में
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।. वाहवादिप्रभृतिषु येषां दर्शनं जौमिके गोत्रभाव इति वचनात् युधिष्ठिरा दिपितुः
पाण्डोरग्रहणात् तदाचिनः पाण्डव इत्येव भवति भवति । प्रदीप 4/1/168. 2. संज्ञा शत्बत्वेन जनपद स्वामित्वेन तत्समान तत्समान शब्द क्षत्रिय जाति विशेष
वाचि पाण्डशब्दापेक्षया अस्य पाण्डत्व गुण योग निमित्तकत्वेनाप्रसिद्ध त्वादिति भावः ।
- उद्योत 4/1/168. 3. लघु सिद्धान्त कौमुदी, अपत्याधिकरणम् प्रकरणम् , पृष्ठ 904. +. अScाध्यायी 4/1/175. 5. वही, 4/1/170.